नीति आयोग की बैठक में योगी आदित्यनाथ के व्यवहार ने खींचा ध्यान : क्या योगी की समस्याएं बढ़ सकती हैं?
दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वरिष्ठ भाजपा नेताओं के प्रति व्यवहार चर्चा का विषय बन गया। बैठक के बाद योगी ने प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा को प्रणाम नहीं किया, जिससे उनके वरिष्ठ नेताओं से नाराजगी के संकेत मिले। इस बीच, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, जिससे योगी की कुर्सी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। नीति आयोग की बैठक का मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।

INDC Network : दिल्ली : दिल्ली में नीति आयोग की बैठक का नजारा: योगी आदित्यनाथ के वरिष्ठ नेताओं से खटास के संकेत
दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में भाजपा और एनडीए गठबंधन के कई सहयोगी दलों के साथ-साथ ममता बनर्जी भी शामिल हुईं। इस बीच, लोकसभा चुनाव के बाद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चर्चा काफी बढ़ गई है, जब अरविंद केजरीवाल ने उनकी कुर्सी को लेकर बातें छेड़ीं। केजरीवाल ने कहा था, "लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद योगी को उनकी कुर्सी से हटा दिया जाएगा," लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। नीति आयोग की बैठक के दौरान कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जो इस स्थिति पर रोशनी डालती हैं। इन तस्वीरों में देखा जा सकता है कि योगी अपने वरिष्ठ नेताओं से नाराज़ चल रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ नीति आयोग की बैठक में भाजपा के अन्य नेता भी थे। बैठक समाप्त होने के बाद जब सभी नेता एक-दूसरे से मिल रहे थे, तब योगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा को प्रणाम नहीं किया। योगी ने केवल रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को प्रणाम किया और अन्य वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज कर दिया। यह दर्शाता है कि योगी अपने ही वरिष्ठ नेताओं से नाराज़ हैं।
मुख्यमंत्री योगी को अपनी कुर्सी की भी चिंता है। बीते दिनों से सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी केशव प्रसाद मौर्य (उपमुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश) और योगी के बीच चल रही तनातनी का पूरा लाभ उठा रहे हैं। अखिलेश यादव ने केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली भाजपा का "वाई-फाई का पासवर्ड" और भाजपा का मोहरा बताया था, जिसके बाद अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर काफी बहसबाजी हुई।
यह सब सामने आने के बाद एक बात तो साफ है कि योगी की कुर्सी को बड़ा खतरा है। योगी और केशव प्रसाद मौर्य के बीच सही से बन नहीं रही है। इसके बाद नीति आयोग की बैठक के दौरान जब ये तस्वीरें सामने आईं, तो इससे यह भी साफ हो गया कि मुख्यमंत्री योगी की प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से भी नहीं बन रही है। इन सभी कारणों को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि यूपी भाजपा में कभी भी तूफान आ सकता है। दूसरी ओर, केशव प्रसाद मौर्य छोटे-छोटे राजनैतिक दलों से लगातार भेंट कर रहे हैं, जिससे ऐसा लगता है जैसे केशव प्रसाद मौर्य अपनी ताकत का अंदाजा योगी को दिखा रहे हों।
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नीति आयोग की बैठक के दौरान जो कुछ भी हुआ, उससे यह बात साफ हो गई है कि योगी की मुश्किलें कभी भी और कहीं भी बढ़ सकती हैं। इस लोकसभा चुनाव के बाद यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। उत्तराखंड में भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा है, इसलिए देखना यह होगा कि यूपी में भाजपा का क्या हाल होगा। अगर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को अच्छा परिणाम यूपी से नहीं मिला तो योगी के साथ कुछ भी हो सकता है।
नीति आयोग का गठन और कार्य नीति आयोग का गठन 1 जनवरी 2015 को मोदी सरकार द्वारा किया गया था। इसका पूरा नाम 'राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था' (National Institute for Transforming India) है। यह भारत सरकार का नीति से संबंधित एक थिंक टैंक है, जो दीर्घकालीन नीतियां और कार्यक्रम तैयार करता है। नीति आयोग का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना, संसाधनों का उपयोग करके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना और राज्यों को तकनीकी सलाह देना है। नीति आयोग की स्थापना 1950 में बने योजना आयोग के स्थान पर की गई थी, जिसका मुख्य कार्य पंचवर्षीय योजना तैयार करना था।
बैठक का उद्देश्य इस बैठक का मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहभागिता और सहयोग को बढ़ावा देना है। इसमें वितरण तंत्र को मजबूत करने और ग्रामीण तथा शहरी दोनों आबादी के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारने पर जोर दिया जाएगा। विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल हुए, जिनमें असम के हिमंत बिस्वा सरमा, मिजोरम के लालदुहोमा, मेघालय के कोनराड संगमा, नागालैंड के नेफ्यू रियो, मणिपुर के एन. बीरेन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू, त्रिपुरा के माणिक साहा और सिक्किम के प्रेम सिंह तमांग शामिल हैं।
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