लोकसभा में आपातकाल की बरसी पर ओम बिरला के भाषण से सदन में हंगामा हुआ।

बुधवार को लोकसभा में ओम बिरला फिर से स्पीकर बनने के बाद अपनी पहली स्पीच में 1975 के आपातकाल की कड़ी निंदा की। उन्होंने इसे लोकतंत्र का काला अध्याय बताया और कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की कड़ी आलोचना की। ओम बिरला ने दो मिनट का मौन रखकर आपातकाल का विरोध करने वालों की सराहना की और संविधान के सिद्धांतों की रक्षा करने का संकल्प दोहराया।

लोकसभा में आपातकाल की बरसी पर ओम बिरला के भाषण से सदन में हंगामा हुआ।

INDC Network : दिल्ली : बुधवार को लोकसभा में एक अलग ही नजारा देखने को मिला। ओम बिरला के फिर से लोकसभा स्पीकर बनने पर विपक्ष ने स्वागत किया, लेकिन निष्कासन के मामले को लेकर दोनों पक्षों में तनातनी बनी रही। ओम बिरला ने अपनी पहली ही स्पीच में अलग रूप दिखाते हुए विपक्ष को हक्का-बक्का कर दिया। उन्होंने 1975 में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की बरसी पर जमकर भाषण दिया और इसे लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बताया।

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इमरजेंसी के लिए कांग्रेस को घेरते हुए सदन में दो मिनट का मौन भी रखा। उन्होंने कहा कि यह सदन 1975 में आपातकाल लगाने के फैसले की कड़ी निंदा करता है और उन सभी लोगों के दृढ़ संकल्प की सराहना करता है जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा की।

ओम बिरला ने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला किया। भारत, जिसे दुनिया भर में लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है, पर इंदिरा गांधी ने तानाशाही थोपी, लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया।

ओम बिरला ने कहा कि 1975 में कांग्रेस सरकार ने देश को जेलखाना बना दिया था। इमरजेंसी के दौरान भारत के नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए, आजादी नष्ट कर दी गई और विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। मीडिया पर पाबंदियां लगाई गईं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के इमरजेंसी के दौरान के फैसले हमारे संविधान की भावनाओं को कुचलने का काम किया। आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम में बदलाव कर कांग्रेस पार्टी ने सुनिश्चित किया कि अदालतें गिरफ्तार लोगों को न्याय नहीं दे पाएं। मीडिया को सच लिखने से रोकने के लिए अधिनियम बनाए गए। इस काले दौर में संविधान में 38वां, 39वां, 40वां, 41वां और 42वां संशोधन किया गया, जिससे सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं।

ओम बिरला ने कहा कि लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया और लोगों को कांग्रेस सरकार द्वारा थोपे गए अनिवार्य नसबंदी के प्रहार झेलने पड़े। उन्होंने कहा कि यह सदन उन सभी लोगों के प्रति संवेदना जताता है जिन्होंने इमरजेंसी का विरोध किया और लोकतंत्र की रक्षा की।

उन्होंने कहा कि इमरजेंसी का कालखंड हमें याद दिलाता है कि कैसे उस समय पर हम सभी पर हमला किया गया था। जब हम इमरजेंसी के 50 वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, यह 18वीं लोकसभा अपनी प्रतिबद्धता को दोहराती है कि हम भारत में कानून और शासन तथा शक्तियों का विकेंद्रीकरण अक्षुण्ण रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।