प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने अखिलेश यादव से मुलाकात की, लक्ष्मण यादव ने क्यों कहा 'लक्ष्मण! समाज को अब तुम्हारी जरुरत है' ?

प्रोफेसर लक्ष्मण यादव लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने सपा की जनसभाओं में प्रभावी भाषण दिए और पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की। अपने सोशल मीडिया पर, लक्ष्मण यादव ने लिखा कि एक समय था जब उन्होंने अपनी कक्षाओं में पढ़ाने का सपना देखा था, लेकिन समाज और संविधान की रक्षा के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने समाजवादी विचारधारा और सामाजिक न्याय के लिए अपने संघर्ष को जारी रखा और चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने अखिलेश यादव से मुलाकात की, लक्ष्मण यादव ने क्यों कहा 'लक्ष्मण! समाज को अब तुम्हारी जरुरत है' ?

प्रोफेसर लक्ष्मण यादव लोकसभा 2024 के दौरान समाजवादी पार्टी से जुड़ गए। और समाजवादी पार्टी की कई जनसभाओं में अपने भाषण के साथ दहाड़ते हुए भी दिखाई दिए। लोकसभा चुनाव 2024 के बिल्कुल आखिरी समय पर एक बार फिर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से लक्ष्मण यादव ने मुलाकात की।


प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखते हुए कहा कि "लक्ष्मण! एक क्लासरूम मात्र को नहीं, अब समाज को तुम्हारी ज़रूरत है।' सर्दियों की एक शाम। लखनऊ शहर का एक सियासी माहौल। सामने एक शानदार शख़्स। मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर मुझसे कुछ यही कहा। आज बड़े फ़क्र के साथ उस शाम को याद कर रहा हूँ।  

ख़्वाब था प्रोफ़ेसर बनकर अपनी कक्षाओं में क़लम, किताब व अपने विद्यार्थियों के साथ ज़िंदगी गुज़ारने का। ख़्वाब तोड़ दिया तंगदिल हुकूमत के कुछ कारिंदों ने। उनकी नज़र में मेरा गुनाह ये था कि मैं उनके मुताबिक़ न था। संविधान की बात करता था, सामाजिक न्याय के विचार पर लिखता, पढ़ता, बोलता था। ख़्वाब छीन लिया। तंगदिल सोच रहे थे कि डर जाऊँगा, टूट जाऊँगा, बिखर जाऊँगा। मगर हक़ व सच की हिम्मत ने कहा-

मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा,
हौसला हार के बैठूँगा तो मर जाऊँगा,
चल रहे थे जो मेरे साथ कहाँ हैं वो लोग,
जो ये कहते थे कि रस्ते में बिखर जाऊँगा।


मैंने #प्रोफ़ेसर_की_डायरी लिखकर वह सब कह डाला, जो हक़ीक़त थी। किताब ने हिन्दी की दुनिया में तहलका मचा दिया। फिर आज़ाद होकर मैंने ख़्वाबों के शज़र पर नया घरौंदा बनाने निकल पड़ा। जब सब कुछ राजनीति तय कर रही हो, तो राजनीति को हम तय करने निकल पड़े। संविधान दिल में लेकर, सामाजिक न्याय का विचार ज़ेहन में लेकर। महापुरुषों के विचार साथ लेकर।

मिला एक नायाब साथ। एक शानदार शख़्स का हाथ। जो उन मुश्किल दिनों में हिम्मत बन गया। जिसने कहा कि 'लक्ष्मण! एक क्लासरूम मात्र को नहीं, अब समाज को तुम्हारी ज़रूरत है।' ये मेरे लिए बड़ी बात थी। मैंने तय किया कि सामाजिक न्याय और संविधान बचाने के इस ऐतिहासिक इम्तेहान के वक़्त तटस्थ या ख़ामोश रहना दग़ाबाज़ी होगी। हाथ में हाथ लेकर चल पड़ा। आज नाज़ है इस साथ पर।

मैंने बहुत क़रीब से महसूस किया कि यह नेता संविधान को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। एक शानदार शख़्स, जिसने मुझसे हर बार कहा कि ये हज़ारों साल के अन्याय व शोषण के ख़िलाफ़ सामाजिक न्याय की लड़ाई है। उन्होंने कहा कि हम सबको मिलकर डॉ. आम्बेडकर और डॉ. लोहिया के अधूरी साझा ख़्वाब को आगे बढ़ाना है। बस फिर क्या था, विचारधारा से प्रतिबद्ध नेता ने भरोसा मज़बूत कर दिया। 

तीन महीने का चुनाव, यूपी जैसी एक सियासी ज़मीन और एक शानदार शख़्स का साथ। कितना कुछ सीखने को मिला। बहुत क़रीब से सियासत को देखने, समझने और उसमें अपनी भूमिका निभाने का मौक़ा मिला। क़लम और क़िताब को ज़मीन से जोड़ने का मौक़ा। सियासत का शानदार रिसर्च का वक्त शानदार गुज़रा। परिणामों ने हौसला बढ़ा दिया। 

पिछले कई वर्षों से हम जिस सामाजिक न्याय के सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा था, अब उसमें एक राजनीतिक अध्याय जुड़ता चला गया। सांप्रदायिक राजनीति के सामने सामाजिक न्याय कि राजनीति की क़ामयाबी का हिस्सा बना। एक नये सियासी आग़ाज़ PDA ने हमें अपनाया और हमने PDA के संघर्ष को।

सफ़र में मुश्किलें आएं, तो जुर्रत और बढ़ती है।
कोई जब रास्ता रोके, तो हिम्मत और बढ़ती है।
अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते हैं दाम अक्सर, 
ना बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढ़ती है।

समाजवाद और संविधान के बुलंद इक़बाल के लिए, बाबा साहब डॉ. आंबेडकर और डॉ. राममनोहर लोहिया के साझा ख़्वाब के लिए, सामाजिक न्याय के खूबसूरत सवेरे के लिए, समाजवाद के पैग़ाम के लिए, इंसाफ़ व इंसानियत के लिए, मोहब्बत भरी फ़िज़ाओं के लिए, इंक़लाब के लाल परचम के लिए हुए इस आग़ाज़ एक मुकम्मल अंजाम तक ले चलेंगे। 

जोहार! जय भीम! जय समाजवाद! इंक़लाब ज़िंदाबाद! "