भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962) की जीवनी : भारतीय संविधान के संरक्षक और महान स्वतंत्रता सेनानी

डॉ. राजेंद्र प्रसाद, भारत के पहले राष्ट्रपति (1950-1962), एक महान स्वतंत्रता सेनानी और संविधान के प्रमुख संरक्षक थे। उनका जीवन संघर्ष, सेवा और सादगी का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर राष्ट्रपति पद तक की उनकी यात्रा प्रेरणादायक रही है। आइए उनके जीवन पर एक विस्तृत नज़र डालते हैं, जिसने भारतीय राजनीति और समाज को गहराई से प्रभावित किया।

Oct 12, 2024 - 19:18
Oct 12, 2024 - 22:35
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भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962) की जीवनी : भारतीय संविधान के संरक्षक और महान स्वतंत्रता सेनानी

INDC Network : जीवनी : भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962): भारतीय संविधान के संरक्षक और महान स्वतंत्रता सेनानी

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का प्रारंभिक जीवन : डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। उनका परिवार धार्मिक और सामाजिक रूप से जागरूक था। बचपन से ही राजेंद्र प्रसाद में शिक्षा के प्रति गहरी रुचि थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुई और उन्होंने अपनी स्नातक और कानून की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वे अपनी प्रतिभा और अध्ययनशीलता के कारण सदैव प्रथम श्रेणी में रहे।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का विवाह महज 12 वर्ष की आयु में राजवंशी देवी से हुआ, जो उस समय के सामाजिक प्रथाओं के अनुसार एक सामान्य बात थी। उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ शिक्षा को भी महत्व दिया और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था और उनकी लेखन शैली बेहद प्रभावशाली थी।


स्वतंत्रता संग्राम में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की भूमिका : डॉ. राजेंद्र प्रसाद का राजनीतिक जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुआ। जब महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह (1917) का नेतृत्व किया, तो राजेंद्र प्रसाद उनके समर्थन में आगे आए और बिहार के किसानों की दुर्दशा को राष्ट्रीय मंच पर उठाया। यहीं से उनके जीवन में गांधीवादी विचारधारा का प्रवेश हुआ, और उन्होंने अपना पूरा जीवन देश और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया और स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता बने। भारतीय असहयोग आंदोलन (1920-1922), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उनकी निष्ठा और संकल्प में कोई कमी नहीं आई।


भारतीय संविधान सभा में योगदान : भारतीय स्वतंत्रता के बाद, जब भारत को अपना संविधान बनाना था, तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया। उनकी अध्यक्षता में संविधान सभा ने भारत का संविधान तैयार किया, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। डॉ. प्रसाद की नेतृत्व क्षमता, धैर्य, और न्यायप्रियता के कारण ही संविधान सभा ने सफलतापूर्वक अपना कार्य पूरा किया। वे संविधान सभा में सदस्यों के बीच संवाद और सहमति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।


भारत के पहले राष्ट्रपति (1950-1962) : 26 जनवरी 1950 को भारत गणराज्य बना और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया। उन्होंने 12 वर्षों तक इस पद को सुशोभित किया और 1962 तक लगातार दो बार राष्ट्रपति बने रहे। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने भारतीय राजनीति और समाज के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया।

राष्ट्रपति के रूप में डॉ. प्रसाद ने सदैव संविधान का पालन किया और उसकी मर्यादा बनाए रखी। उन्होंने राष्ट्रपति पद को राजनीति से दूर रखते हुए इसे एक गरिमामय और निष्पक्ष संस्था के रूप में स्थापित किया। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर देश के विकास और सामाजिक न्याय के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाई।


सादगी और नैतिकता का प्रतीक : डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जीवन सादगी और नैतिकता का एक अद्वितीय उदाहरण था। वे अपने राष्ट्रपति काल के दौरान भी अत्यंत साधारण जीवन जीते थे। वे अपने निजी जीवन में भी एक किसान के बेटे की तरह सरल और स्वाभाविक बने रहे। जब वे राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने अपने वेतन का बड़ा हिस्सा देश के गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा के लिए दान कर दिया।

डॉ. प्रसाद का मानना था कि देश के नेता को जनता की सेवा में समर्पित होना चाहिए और उसे किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत विलासिता से दूर रहना चाहिए। उनके जीवन की यह सादगी और सेवा भावना आज भी प्रेरणा का स्रोत है।


भारत रत्न से सम्मानित : 1962 में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनकी देश सेवा, त्याग और महान नेतृत्व क्षमता के लिए दिया गया था। वे भारत रत्न पाने वाले उन महान व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय समाज और राजनीति को न केवल स्वतंत्रता दिलाई बल्कि उसे सही दिशा भी दी।


डॉ. राजेंद्र प्रसाद की लिखित कृतियाँ : डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान लेखक और चिंतक भी थे। उनकी लिखी गईं कई पुस्तकें भारतीय इतिहास और समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। उनके द्वारा लिखी गई प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:

  1. आत्मकथा: इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों और अनुभवों को साझा किया है। यह भारतीय राजनीति और समाज की एक सजीव झलक है।
  2. भारत विभाजन के साक्षी: इस पुस्तक में उन्होंने भारत के विभाजन के समय की घटनाओं और अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है।
  3. चंपारण की कहानी: इस पुस्तक में उन्होंने चंपारण सत्याग्रह और किसानों के अधिकारों के लिए किए गए संघर्ष की कहानी बताई है।

जीवन के अंतिम वर्ष : राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद पटना लौट आए, जहाँ उन्होंने अपने शेष जीवन को समाज सेवा और लेखन में व्यतीत किया। वे बीमारियों से ग्रस्त हो गए थे, लेकिन फिर भी उनका समाज और देश के प्रति समर्पण अडिग रहा। 28 फरवरी 1963 को पटना में उनका निधन हो गया।

उनकी मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके जीवन मूल्य भारतीय समाज और राजनीति में सदैव अमर रहेंगे। उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र और स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है।


डॉ. राजेंद्र प्रसाद की विरासत : डॉ. राजेंद्र प्रसाद की विरासत न केवल भारतीय संविधान के निर्माण में उनके योगदान में निहित है, बल्कि उनके जीवन के प्रत्येक पहलू में सादगी, सेवा और निष्ठा के गुण दिखाई देते हैं। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने कभी भी सत्ता को अपने सिर पर नहीं चढ़ने दिया और सदैव अपने आदर्शों के प्रति सच्चे बने रहे। उनकी शिक्षाएं और उनके द्वारा स्थापित मानक आज भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक हैं।

उनकी स्मृति में भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण संस्थानों का नामकरण किया है, जिसमें पटना का राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल प्रमुख है। इसके अलावा उनके जीवन और कार्यों पर कई शोध और पुस्तकें लिखी गई हैं, जो आज भी युवाओं और नेताओं को प्रेरित करती हैं।


निष्कर्ष : डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जीवन एक प्रेरणास्रोत है। उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू में निष्ठा, सादगी, और सेवा के उच्चतम मानकों को स्थापित किया। वे न केवल भारत के पहले राष्ट्रपति थे, बल्कि एक महान स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, और भारतीय संविधान के प्रमुख संरक्षक भी थे। उनका जीवन और कार्य भारतीय लोकतंत्र और समाज के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेंगे। उनका योगदान हमें यह सिखाता है कि निष्ठा और सादगी के साथ भी महान कार्य किए जा सकते हैं।

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Sangam Shakya Hello! My Name is Sangam Shakya from Farrukhabad (Uttar Pradesh), India. I am 18 years old. I have been working for INDC Network news company for the last one year. My position in INDC Network company is Managing Editor