फखरुद्दीन अली अहमद (1974-1977) की जीवनी : भारत के पांचवें राष्ट्रपति और आपातकाल के दौर के नेता

फखरुद्दीन अली अहमद भारत के पांचवें राष्ट्रपति (1974-1977) थे, जिनके कार्यकाल के दौरान देश ने आपातकाल (1975-1977) का सामना किया। वे भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण नेता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और स्वतंत्रता के बाद कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। उनका जीवन राष्ट्रसेवा और लोकतंत्र की रक्षा के लिए समर्पित था। उनके कार्यकाल में देश की राजनीति और संविधान में बड़े बदलाव आए, जिससे उनका नाम भारतीय इतिहास में अमर हो गया। इस लेख में उनके जीवन और योगदान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

Oct 12, 2024 - 19:50
Oct 12, 2024 - 22:33
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फखरुद्दीन अली अहमद (1974-1977) की जीवनी : भारत के पांचवें राष्ट्रपति और आपातकाल के दौर के नेता

INDC Network : जीवनी : फखरुद्दीन अली अहमद (1974-1977) की जीवनी : भारत के पांचवें राष्ट्रपति और आपातकाल के दौर के नेता

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई 1905 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता, कर्नल जलनूर अली अहमद, ब्रिटिश सेना में एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे और उनकी माता, रूखिया बेगम, असम के एक संपन्न परिवार से थीं। उनके पिता की नौकरी के कारण उनका परिवार अक्सर अलग-अलग जगहों पर रहा। लेकिन फखरुद्दीन की परवरिश और शिक्षा का बड़ा हिस्सा असम में ही हुआ।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा असम के सरकारी स्कूलों में हुई, जहाँ से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड की यात्रा की और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सेंट कैथरीन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वहीं पर उन्हें कानून की पढ़ाई करने का अवसर मिला, और उन्होंने लंदन से बार-एट-लॉ की उपाधि भी प्राप्त की। इंग्लैंड में रहते हुए वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के संपर्क में आए और उनकी देशभक्ति और राजनीतिक विचारधारा विकसित हुई।


स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका : फखरुद्दीन अली अहमद का राजनीतिक जीवन भारत लौटने के बाद शुरू हुआ। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थे और असम के क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता बने।

1931 में, उन्होंने असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उनकी राजनीतिक सक्रियता के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। वे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहे, जिसमें ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें तीन साल तक जेल में रखा।

उनके योगदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में शामिल किया और उनकी प्रतिष्ठा एक समर्पित राष्ट्रवादी के रूप में स्थापित हुई। स्वतंत्रता के बाद, वे भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने लगे।


स्वतंत्रता के बाद का राजनीतिक जीवन : स्वतंत्रता के बाद, फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना जारी रखा। वे 1946 में असम विधानसभा के लिए चुने गए और स्वतंत्रता के बाद उन्हें भारत सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का अवसर मिला। वे असम राज्य के महत्वपूर्ण नेताओं में गिने जाते थे और असम के विकास के लिए उन्होंने कई योजनाएँ शुरू कीं।

1952 में, उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और वे खाद्य और कृषि मंत्री बने। इसके बाद, उन्होंने केंद्र सरकार के कई महत्वपूर्ण विभागों का नेतृत्व किया, जिनमें रक्षा मंत्रालय और औद्योगिक विकास मंत्रालय शामिल थे। वे 1966 से 1974 तक भारत के गृह मंत्री भी रहे। गृह मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।


राष्ट्रपति पद (1974-1977) : फखरुद्दीन अली अहमद को 1974 में भारत के पांचवें राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति के सबसे चुनौतीपूर्ण समय में हुआ, जब देश आपातकाल के दौर से गुजर रहा था। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अत्यंत विवादास्पद घटना थी।

राष्ट्रपति के रूप में, फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा को मंजूरी दी, जो उनके कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद निर्णय माना जाता है। उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, क्योंकि आपातकाल के दौरान कई नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ और प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

हालांकि, यह भी सच है कि वे इंदिरा गांधी के निकटतम विश्वासपात्रों में से एक थे और उनके प्रति वफादार रहे। इसके बावजूद, कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि राष्ट्रपति अहमद संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा को बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे राजनीतिक दबाव के कारण पूरी तरह स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाए।


आपातकाल (1975-1977) और विवाद : आपातकाल का दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर संकट था। इस समय के दौरान, देश में राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक अशांति बढ़ गई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में आपातकाल लागू किया गया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने नागरिक स्वतंत्रता और विपक्षी दलों पर कठोर प्रतिबंध लगाए।

आपातकाल की घोषणा के दौरान, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल को मंजूरी दी। इसके बाद, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया गया और राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार किया गया। विपक्षी दलों और नागरिक समाज ने आपातकाल की कड़ी निंदा की और इसे भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ बताया।

राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का यह निर्णय उन्हें विवादास्पद बना गया। हालांकि, उनके समर्थकों का मानना था कि वे उस समय की परिस्थिति और संविधान के तहत अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे। उनकी भूमिका आज भी इतिहासकारों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। 


असामयिक निधन : 11 फरवरी 1977 को फखरुद्दीन अली अहमद का राष्ट्रपति पद पर रहते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका निधन भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक बड़ी क्षति थी। वे दूसरे राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल के दौरान निधन हुआ। उनके निधन के बाद, बी.डी. जत्ती ने अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला।

उनके निधन के बाद, फखरुद्दीन अली अहमद की विरासत को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आईं। एक ओर, उन्हें एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा राष्ट्र की सेवा में समर्पित किया। दूसरी ओर, आपातकाल के दौरान उनकी भूमिका के कारण उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा।

भारत रत्न से सम्मानित नहीं : फखरुद्दीन अली अहमद को उनके जीवनकाल में या मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया। हालांकि, उनकी सेवाओं को अन्य माध्यमों से मान्यता दी गई और उनकी स्मृति को सम्मानित किया गया। उनके नाम पर कई सार्वजनिक संस्थान और सड़कों का नामकरण किया गया, जिससे उनकी विरासत और योगदान को सम्मानित किया जा सके।


फखरुद्दीन अली अहमद की लिखित कृतियाँ और विचारधारा : फखरुद्दीन अली अहमद एक कुशल लेखक और विचारक भी थे। उनके लेखों और भाषणों में भारतीय राजनीति, समाज और संविधान पर गहरा चिंतन देखने को मिलता है। वे एक प्रगतिशील विचारक थे, जो समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए काम करने में विश्वास रखते थे।

उनके लेखन में स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्रीय एकता, और सांप्रदायिक सद्भावना के मुद्दे प्रमुखता से सामने आते हैं। उन्होंने यह विश्वास किया कि भारतीय समाज की ताकत उसकी विविधता और बहुलता में निहित है और उन्होंने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए।


व्यक्तिगत जीवन : फखरुद्दीन अली अहमद के निजी जीवन में सादगी और विनम्रता का गहरा प्रभाव था। उन्होंने देश की सेवा को हमेशा अपने व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखा। उनकी पत्नी, बेगम आबिदा अहमद, भी एक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

उनके निजी जीवन में उनकी सादगी और नैतिकता का गहरा प्रभाव था, जो उनके राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी साफ देखा जा सकता था। उनका परिवार भारतीय समाज और राजनीति में उच्च स्थान पर कायम रहा।


निष्कर्ष : फखरुद्दीन अली अहमद का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है। वे एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनेता, और राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवाओं के लिए याद किए जाते हैं। आपातकाल के दौरान उनकी भूमिका विवादास्पद रही, लेकिन उनके जीवन के बाकी हिस्से में उन्होंने हमेशा देश की सेवा को प्राथमिकता दी। उनके योगदान को भारतीय राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा।

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Sangam Shakya Hello! My Name is Sangam Shakya from Farrukhabad (Uttar Pradesh), India. I am 18 years old. I have been working for INDC Network news company for the last one year. My position in INDC Network company is Managing Editor