2014 में 60 रुपया के बराबर था एक डॉलर : रिकॉर्ड टूटा 1 डॉलर की कीमत हुई 85 रुपया
डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर बंद होने के बाद अगले दिन लगभग स्थिर खुला। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के दर कटौती संकेतों ने रुपये पर दबाव बढ़ाया। भारतीय बॉन्ड यील्ड भी स्थिर रही। आरबीआई के संभावित हस्तक्षेप से गिरावट पर अंकुश लग सकता है।
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INDC Network : बिजनेस : 2014 में 60 रुपया के बराबर था एक डॉलर : रिकॉर्ड टूटा 1 डॉलर की कीमत हुई 85 रुपया
भारतीय रुपया: स्थिरता और गिरावट के बीच
डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 20 दिसंबर को लगभग स्थिर स्तर पर खुला। यह पिछली ट्रेडिंग सत्र के 85.08 स्तर पर ही बंद हुआ था। रुपये की इस स्थिरता के पीछे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के संभावित हस्तक्षेप का अनुमान है।
19 दिसंबर को रुपया अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कम दर कटौती के संकेतों के बाद रिकॉर्ड निम्न स्तर पर पहुंचा था। इसके बावजूद, रुपया एशियाई मुद्राओं की तुलना में सबसे कम अस्थिर रहा है।
बॉन्ड यील्ड का स्थिर प्रदर्शन
भारतीय 10-वर्षीय बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड 6.783% पर खुली, जो पिछले सत्र के 6.786% से थोड़ी कम है।
तालिका में डेटा:
तारीख | रुपये का स्तर (डॉलर के मुकाबले) | 10-वर्षीय बॉन्ड यील्ड (%) |
---|---|---|
19 दिसंबर | 85.08 | 6.786 |
20 दिसंबर | 85.08 | 6.783 |
फेडरल रिजर्व का प्रभाव
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बुधवार को अपनी ब्याज दर को 4.25%-4.5% के लक्ष्य पर घटा दिया। यह लगातार तीसरी बार हुआ जब फेड ने अपनी प्रमुख नीति दर में कटौती की।
फेड ने 2025 में दो और दर कटौती की संभावना जताई है, जिससे वैश्विक बाजारों में चिंताएं बढ़ गई हैं।
रुपये की गिरावट का कैलेंडर वर्ष में प्रदर्शन
2024 के दौरान, भारतीय रुपया अब तक 2% से अधिक गिर चुका है। हालांकि, यह एशियाई मुद्राओं में सबसे स्थिर रहा है।
भारतीय रुपये की डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोरी की कई आर्थिक, वैश्विक, और नीतिगत वजहें हैं। 2014 के बाद से रुपये की स्थिति पर नज़र डालने से यह स्पष्ट होता है कि यह समस्या केवल घरेलू नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी जुड़ी हुई है।
रुपये की कमजोरी के प्रमुख कारण
1. अंतरराष्ट्रीय कारक
- डॉलर की मजबूती: अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना भारतीय रुपये पर लगातार दबाव बनाता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाने के कारण डॉलर आकर्षक निवेश विकल्प बन गया है, जिससे अन्य मुद्राओं की मांग कम होती है।
- वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता: कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, और वैश्विक मंदी की आशंका ने निवेशकों को डॉलर जैसी सुरक्षित मुद्राओं की ओर रुख करने पर मजबूर किया है।
- कच्चे तेल की कीमतें: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से आयात खर्च बढ़ता है, जिससे रुपये की मांग घटती है और डॉलर के मुकाबले यह कमजोर होता है।
2. घरेलू आर्थिक नीतियां
- चालू खाता घाटा (Current Account Deficit): भारत का आयात, खासकर ऊर्जा आयात, निर्यात की तुलना में अधिक है। यह चालू खाता घाटा बढ़ाता है और रुपये पर दबाव डालता है।
- विदेशी निवेश में गिरावट: भारत में विदेशी निवेश (FDI और FPI) में कमी आई है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावित हुआ है।
3. नीतिगत निर्णयों का प्रभाव
- 2016 में नोटबंदी और 2017 में GST लागू करने के बाद आर्थिक गतिविधियां धीमी हो गईं। इसके कारण औद्योगिक उत्पादन और व्यापार पर असर पड़ा।
- ब्याज दरें और मुद्रास्फीति: उच्च मुद्रास्फीति और अपेक्षाकृत कम ब्याज दरों ने विदेशी निवेशकों को अन्य बाजारों की ओर आकर्षित किया।
2014 के बाद रुपये की स्थिति कमजोर क्यों हुई?
2014 के बाद से रुपये की स्थिति को प्रभावित करने वाले बड़े कारक:
- आयात में निर्भरता: भारत का आयात, विशेषकर ऊर्जा, में तेज़ी आई।
- वैश्विक घटनाएं: जैसे ब्रेक्जिट, अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध, और हालिया युद्धों ने वैश्विक अस्थिरता को बढ़ाया।
- राजकोषीय घाटा: सरकार द्वारा अधिक उधारी और खर्च के कारण राजकोषीय घाटा बढ़ा।
- RBI का हस्तक्षेप: भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप किया, लेकिन वैश्विक परिस्थितियों के आगे यह सीमित प्रभावी रहा।
आगे का रास्ता
- आत्मनिर्भरता: भारत को आयात पर निर्भरता कम कर घरेलू उत्पादन और निर्यात बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
- डॉलर पर निर्भरता घटाना: व्यापार के लिए अन्य मुद्राओं (जैसे यूरो, युआन) का उपयोग बढ़ाना।
- विदेशी निवेश को आकर्षित करना: स्थिर नीतियां और अनुकूल माहौल तैयार कर FDI और FPI को प्रोत्साहन देना।
हालांकि, वैश्विक आर्थिक कारकों पर भारत का नियंत्रण सीमित है, लेकिन घरेलू सुधार और आर्थिक स्थिरता रुपये को मजबूत करने में मदद कर सकते हैं।
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