प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : डॉ. शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनका परिवार एक शिक्षित और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार था। वे बचपन से ही शिक्षा और नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पित रहे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई और बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला लिया।
शंकर दयाल शर्मा ने अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. और कानून में एल.एल.एम. की डिग्रियां हासिल कीं। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक किया। इसके अलावा, उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) और हार्वर्ड लॉ स्कूल (अमेरिका) से भी कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त की। यह शिक्षा उन्हें न केवल कानूनी ज्ञान में कुशल बनाती है, बल्कि उन्हें वैश्विक दृष्टिकोण भी प्रदान करती है, जो उनके राजनीतिक और संवैधानिक जीवन में सहायक सिद्ध हुआ।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान : शंकर दयाल शर्मा ने अपने युवा काल में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। वे महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचारों से अत्यधिक प्रेरित थे। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनका संपर्क कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से हुआ और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।
स्वतंत्रता के बाद भी शंकर दयाल शर्मा ने देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय राजनीति में गांधीवादी आदर्शों और नैतिकता का पालन किया, जिससे उन्हें कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं में गिना जाने लगा।
प्रारंभिक राजनीतिक करियर : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, शंकर दयाल शर्मा ने भारतीय राजनीति में अपनी यात्रा शुरू की। 1952 में, उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने प्रशासनिक दक्षता और जन कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने पर जोर दिया। उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में राज्य के विकास और सामाजिक कल्याण पर विशेष ध्यान दिया गया।
मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। वे हमेशा राज्य के विकास के प्रति समर्पित रहे और राज्य की जनता के बीच लोकप्रिय रहे। उनके नेतृत्व में मध्य प्रदेश ने कई आर्थिक और सामाजिक सुधार देखे, जिनका प्रभाव राज्य के विकास पर लंबे समय तक बना रहा।
कानूनी और न्यायिक करियर : शंकर दयाल शर्मा एक कुशल वकील थे और उन्होंने भारतीय न्यायपालिका के प्रति गहरा सम्मान रखा। उन्होंने अपने कानूनी ज्ञान का उपयोग न केवल राजनीतिक क्षेत्र में, बल्कि न्यायिक सुधारों और संवैधानिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए भी किया। उनका कानूनी करियर न केवल भारतीय संविधान की गहरी समझ का प्रतीक था, बल्कि न्याय और नैतिकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता था।
उनके कानूनी करियर की शुरुआत उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत से हुई। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में अपनी राय दी और संवैधानिक मुद्दों पर विशेषज्ञता हासिल की। उनके कानूनी करियर ने उन्हें राजनीति में भी एक विशिष्ट स्थान दिलाया, और उनकी संवैधानिक समझ ने उन्हें एक आदर्श राष्ट्रपति बनने में मदद की।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नेतृत्व : शंकर दयाल शर्मा का राजनीतिक करियर कांग्रेस पार्टी के साथ गहरे संबंधों से भरा रहा। वे पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे और कांग्रेस संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य भी रहे और पार्टी के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सलाहकार की भूमिका निभाई।
उनकी नेतृत्व क्षमता, राजनीतिक दूरदर्शिता और संवैधानिक समझ ने उन्हें पार्टी के भीतर एक प्रभावशाली नेता बना दिया। वे न केवल एक कुशल संगठनकर्ता थे, बल्कि अपने व्यवहार और नैतिकता के लिए भी जाने जाते थे। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दीं, जिनमें राज्य और केंद्र स्तर पर नेतृत्व का योगदान शामिल था।
उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल : 1987 में, शंकर दयाल शर्मा को भारत का उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया। उपराष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्य किया और संसदीय कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस पद पर रहते हुए, उन्होंने संसदीय प्रक्रिया को सम्मानजनक और कुशल बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए।
उनका उपराष्ट्रपति कार्यकाल संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने सदन में सभी सदस्यों के साथ निष्पक्ष और संतुलित व्यवहार किया और संसद के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। इस दौरान, उन्होंने कई संवैधानिक मुद्दों पर विशेषज्ञता दिखाई और देश की संसद को अधिक प्रभावी बनाने में मदद की।
भारत के नौवें राष्ट्रपति (1992-1997) : 1992 में, शंकर दयाल शर्मा को भारत का नौवां राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान भारत ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना किया। उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने संविधान के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी और देश की एकता और अखंडता की रक्षा की।
राष्ट्रपति के रूप में, शंकर दयाल शर्मा ने संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे और हमेशा संविधान की रक्षा के प्रति समर्पित रहे। उनके नेतृत्व में राष्ट्रपति पद की गरिमा और संविधान की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियाँ : राष्ट्रपति के रूप में शंकर दयाल शर्मा के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक घटनाएँ हुईं। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना और इसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगे उनके कार्यकाल की प्रमुख चुनौतियों में से एक थे। इस समय, देश में तनाव का माहौल था और सरकार को संकट से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने पड़े।
शंकर दयाल शर्मा ने इस संवेदनशील मुद्दे पर संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा की और देश में शांति बनाए रखने के लिए सरकार और अन्य संस्थानों के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने हमेशा संविधान को सर्वोच्च रखा और अपने कार्यकाल के दौरान संवैधानिक ढांचे की रक्षा की।
राष्ट्रपति के रूप में योगदान : राष्ट्रपति के रूप में, शंकर दयाल शर्मा का योगदान भारतीय राजनीति और संविधान की रक्षा में अद्वितीय रहा। उन्होंने संवैधानिक ढांचे को सुदृढ़ करने, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सम्मानजनक बनाने, और देश के विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका कार्यकाल देश की राजनीतिक अस्थिरता के बीच भी संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का प्रतीक रहा। उन्होंने संविधान के अनुच्छेदों का पालन करते हुए सभी संवैधानिक दायित्वों को निभाया और देश की एकता और अखंडता की रक्षा के प्रति समर्पित रहे।
व्यक्तिगत जीवन और सादगी : डॉ. शंकर दयाल शर्मा का जीवन सादगी और नैतिकता का प्रतीक था। राष्ट्रपति भवन में रहते हुए भी उन्होंने अपने जीवन में सादगी बनाए रखी। वे एक ईमानदार और निष्ठावान नेता के रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने हमेशा अपने निजी जीवन में नैतिकता और ईमानदारी का पालन किया।
उनका व्यक्तिगत जीवन एक सच्चे राष्ट्रभक्त और धार्मिक व्यक्ति का था। वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के गहरे अनुयायी थे और अपने जीवन में उच्च मानवीय मूल्यों का पालन करते रहे। उनका जीवन जनता के प्रति समर्पण और सेवा का आदर्श उदाहरण था।