सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: यूपी मदरसा एक्ट रहेगा बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाई कोर्ट का फैसला

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया। अदालत ने अधिनियम की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। इसके साथ ही, कोर्ट ने मदरसों में शिक्षा के मानकों को विनियमित करने के अधिकार की पुष्टि की, जो अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षा अधिकार की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

Nov 5, 2024 - 12:33
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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:  यूपी मदरसा एक्ट रहेगा बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाई कोर्ट का फैसला

INDC Network : नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: यूपी मदरसा एक्ट 2004 पर विवाद खत्म, धार्मिक अधिकार और शिक्षा में संतुलन

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला, यूपी मदरसा एक्ट संवैधानिक घोषित

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 पर अहम फैसला सुनाते हुए इस अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसने इस कानून को असंवैधानिक ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यूपी सरकार को झटका लगा, क्योंकि हाई कोर्ट ने इसे संविधान और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ मानते हुए असंवैधानिक करार दिया था।

कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यह अधिनियम राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षा के अधिकारों की सुरक्षा के लिए है और इसका उद्देश्य मदरसों में शिक्षा के स्तर को मानकीकृत करना है। अदालत ने कहा कि यह अधिनियम मदरसों के रोजमर्रा के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि उनका उद्देश्य शिक्षा के मानकों को सुनिश्चित करना है ताकि छात्रों को एक सभ्य जीवनयापन के लिए सक्षम बनाया जा सके।


मदरसों में उच्च शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 12वीं कक्षा से आगे के प्रमाणपत्रों, जैसे कामिल और फाजिल की मान्यता, यूपी मदरसा बोर्ड द्वारा नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये यूजीसी अधिनियम के खिलाफ हैं। इसका मतलब है कि 13,000 से अधिक मदरसे यूपी में पूर्ववत कार्य करते रहेंगे, और राज्य इन शिक्षा मानकों का नियमन करेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस अधिनियम से मदरसों के शैक्षणिक मानकों में सुधार किया जा सकेगा, जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी।

कोर्ट ने मदरसा अधिनियम को असंवैधानिक करार देने के हाई कोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि इसका उद्देश्य केवल शिक्षा के मानकों को विनियमित करना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिनियम अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षणिक संस्थानों के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है और राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है। अधिनियम के प्रावधान राज्य को यह सुनिश्चित करने में सक्षम बनाते हैं कि सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके।


न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का बयान: धार्मिक शिक्षा, धर्मनिरपेक्षता और मदरसों का अधिकार

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है, "जियो और जीने दो।" उन्होंने पूछा कि क्या धार्मिक शिक्षा का अर्थ शिक्षा के अधिकार में शामिल नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक शिक्षा को बाहर करना सही नहीं होगा, क्योंकि भारत में शिक्षा का अर्थ व्यापक है। उन्होंने कहा, "क्या हमारे राष्ट्रीय हित में यह है कि हम मदरसों को विनियमित करें?"

यह भी कहा गया कि, "अगर हम हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हैं, तब भी माता-पिता अपने बच्चों को मदरसों में भेजेंगे।" अदालत ने इस अधिनियम को मदरसों के इतिहास और योगदान की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना, ताकि उनकी प्राचीन धरोहर संरक्षित रह सके और उन्हें मुख्यधारा के शिक्षा मानकों के अनुसार संगठित किया जा सके।

अधिनियम के समर्थन में याचिका दायर करने वालों ने अदालत में तर्क दिया था कि हाई कोर्ट ने गलत रूप से अधिनियम के उद्देश्यों को धार्मिक प्रचार समझा। वहीं, एनसीपीसीआर और अन्य विरोध करने वाले हस्तक्षेपकर्ताओं ने दलील दी कि मदरसा शिक्षा प्रणाली के कारण संविधान के अनुच्छेद 21ए में निहित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के वादे की अनदेखी हो रही है।

अदालत के इस फैसले से अब यह साफ हो गया है कि मदरसा शिक्षा प्रणाली के सुधार की दिशा में यूपी मदरसा एक्ट 2004 राज्य सरकार को बेहतर दिशा प्रदान कर सकता है, और साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों के शिक्षा के अधिकारों का संरक्षण भी सुनिश्चित कर सकता है।

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