बरेली में जनसेवा केंद्र बना फर्जी दस्तावेज़ों की फैक्ट्री, पुलिस ने मारा छापा

बरेली जिले के सीबीगंज क्षेत्र में एक जनसेवा केंद्र से फर्जी दस्तावेज तैयार करने का बड़ा रैकेट पकड़ा गया। मिलिट्री इंटेलिजेंस की सूचना पर पुलिस ने छापा मारकर कई नकली आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और शैक्षणिक प्रमाण पत्र बरामद किए। आरोपी संचालक मुकेश देवल मौके से फरार हो गया। पुलिस ने उपकरण और दस्तावेज़ जब्त कर जांच शुरू कर दी है।

May 29, 2025 - 14:35
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बरेली में जनसेवा केंद्र बना फर्जी दस्तावेज़ों की फैक्ट्री, पुलिस ने मारा छापा

INDC Network : बरेली, उत्तर प्रदेश : फर्जीवाड़े का गढ़ बना जनसेवा केंद्र, पुलिस ने छापेमारी कर खोली पोल

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मिलिट्री इंटेलिजेंस से मिली पुख्ता जानकारी

बरेली के सीबीगंज थाना क्षेत्र अंतर्गत महेशपुर गांव स्थित एक जनसेवा केंद्र लंबे समय से फर्जी दस्तावेज तैयार करने का अड्डा बना हुआ था। इसकी जानकारी मिलिट्री इंटेलिजेंस, लखनऊ (बरेली यूनिट) को मिली। इनपुट्स के आधार पर एक बड़ी कार्रवाई की योजना बनाई गई।

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एसओजी और थाना पुलिस की संयुक्त छापेमारी

बुधवार को एसओजी प्रभारी निरीक्षक देवेंद्र धामा और सीबीगंज थाना पुलिस की संयुक्त टीम ने महेशपुर गांव स्थित जनसेवा केंद्र पर छापा मारा। छापेमारी के दौरान केंद्र में भारी मात्रा में फर्जी दस्तावेज़ और डिवाइसेज़ बरामद किए गए।


बरामद हुआ ये सामान

पुलिस को मौके से निम्नलिखित सामग्री बरामद हुई:

  • कई फर्जी आधार कार्ड

  • पैन कार्ड की प्रतियां

  • आयुष्मान भारत कार्ड

  • हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की नकली मार्कशीट

  • ड्राइविंग लाइसेंस के फॉर्म

  • लैपटॉप, प्रिंटर

  • फर्जी मोहरें और सरकारी प्रतीकों की प्रतिलिपियां

इन दस्तावेजों के जरिए न केवल पहचान पत्र तैयार किए जा रहे थे, बल्कि अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी झूठे आधार पर उठाया जा रहा था।


मुख्य आरोपी मौके से फरार

जनसेवा केंद्र का संचालक मुकेश देवल, जो खुद महेशपुर गांव का निवासी है, पुलिस की कार्रवाई के दौरान फरार हो गया। पुलिस ने उसकी तलाश में दबिश देना शुरू कर दिया है और उसके खिलाफ संबंधित धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है।


फर्जी दस्तावेज़ कैसे तैयार होते थे?

प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि मुकेश देवल अपने मकान के नीचे स्थित दुकान में ग्राहकों से मोटी रकम लेकर फर्जी पहचान पत्र तैयार करता था। इन पहचान पत्रों को वैध दस्तावेज़ों की तरह उपयोग किया जाता था। कई लोगों ने इन दस्तावेजों की मदद से सरकारी योजनाओं में नाम दर्ज करवाया और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाए।


पुलिस कर रही गहन जांच

एसओजी और थाना पुलिस अब यह जांच कर रही है कि अब तक कितने फर्जी दस्तावेज बनाए जा चुके हैं और किन लोगों ने इनका इस्तेमाल किया। साथ ही यह भी जांच की जा रही है कि क्या इस रैकेट में अन्य लोग भी शामिल हैं।


डिजिटल इंडिया मिशन पर सवाल

इस घटना ने "डिजिटल इंडिया" की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर सरकार डिजिटल पहचान की सुरक्षा की बात करती है, वहीं ऐसे रैकेट उसके भरोसे को झटका देते हैं।

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