EOS-9 लॉन्च फेल: चंद्रयान भेजने वाला रॉकेट PSLV अब खुद बना रहस्य
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का EOS-9 सैटेलाइट मिशन PSLV रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था, लेकिन यह मिशन तीसरे चरण में प्रेशर गिरने के कारण असफल हो गया। ISRO के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रविवार सुबह 5:59 बजे लॉन्च हुआ PSLV रॉकेट, अपने पहले और दूसरे चरण को सफलतापूर्वक पार करने के बाद तीसरे चरण में गिरते प्रेशर के कारण असफल रहा। EOS-9 सैटेलाइट भारत की निगरानी क्षमताओं को कई गुना बढ़ा सकता था। अब इस असफलता की जांच ISRO की आंतरिक व सरकारी बाहरी समिति करेगी।

INDC Network : श्रीहरिकोटा : EOS-9 लॉन्च विफलता: घटनाक्रम और विश्लेषण
मिशन का उद्देश्य क्या था?
EOS-9 एक एडवांस अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट था, जिसे 500 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थापित कर देश की निगरानी क्षमताओं को सशक्त बनाना था। इस उपग्रह में Synthetic Aperture Radar (SAR) था जो हर मौसम और रात में भी निगरानी में सक्षम था।

PSLV की 63वीं उड़ान: क्या हुआ?
चरण | विवरण |
---|---|
लॉन्च तारीख | 18 मई, 2025 - रविवार सुबह 5:59 बजे |
लॉन्च स्थल | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा |
रॉकेट | PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) |
मिशन संख्या | 63वाँ PSLV लॉन्च, 101वीं कुल उड़ान |
सैटेलाइट | EOS-9 (Earth Observation Satellite) |
क्या वजह रही विफलता की?
लॉन्च के दौरान पहले और दूसरे चरण सफल रहे, लेकिन तीसरे चरण में Solid Fuel Motor में चेंबर प्रेशर में गिरावट पाई गई, जिससे रॉकेट को निर्धारित कक्षा तक नहीं पहुंचाया जा सका। ISRO प्रमुख श्री नारायणन के अनुसार:
“मोटर केस में चेंबर प्रेशर गिरा और मिशन पूरा नहीं हो पाया। पूरी जांच जारी है।”
जांच और अगला कदम
अब ISRO की आंतरिक फेल्योर एनालिसिस कमेटी और सरकार की बाहरी समिति इस असफलता की गहराई से जांच करेंगी। ऐसे मामलों में निष्कर्ष आने में आमतौर पर कुछ सप्ताह लगते हैं।
EOS-9 क्यों था खास?
विशेषता | विवरण |
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तकनीक | Synthetic Aperture Radar (SAR) |
उपयोग | सीमा सुरक्षा, कृषि निगरानी, शहरी योजना, आपदा प्रबंधन, रात्रि निगरानी |
कक्षा | 500 किमी (लो अर्थ ऑर्बिट) |
मिशन जीवन | निर्धारित अवधि के बाद डी-ऑर्बिट की योजना |
पर्यावरण दृष्टिकोण | दो साल में पूर्ण Decay के लिए अतिरिक्त ईंधन सुरक्षित |
ISRO का ट्रैक रिकॉर्ड :
ISRO के PSLV रॉकेट को अब तक विश्वसनीयता का प्रतीक माना जाता रहा है। यही रॉकेट चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशनों को ले गया था। EOS-9 मिशन की विफलता ISRO की छवि को तगड़ा झटका दे सकती है, लेकिन संस्था की पारदर्शिता और तेजी से सुधार की प्रक्रिया इसकी ताकत बनी हुई है।
भविष्य की राह
EOS-9 सैटेलाइट का निर्माण दोबारा करने में कुछ वर्ष लग सकते हैं। तब तक ISRO की चार Radar सैटेलाइट और आठ Cartosat उपग्रह भारत की सीमाओं की निगरानी करते रहेंगे।
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