बदलापुर मामला: पुलिस की लापरवाही और विरोध प्रदर्शन के बाद तीन अधिकारी निलंबित
महाराष्ट्र के बदलापुर में एक स्कूल की दो बच्चियों के साथ हुए यौन शोषण के मामले में पुलिस की लापरवाही के कारण तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया गया है। इस घटना के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें नागरिकों ने रेल यातायात को भी अवरुद्ध कर दिया। सरकार ने इस मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है और इसे फास्ट-ट्रैक कोर्ट में चलाने के निर्देश दिए हैं।

INDC Network : बदलापुर(महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र के बदलापुर में घटित यौन शोषण की घटना ने राज्य भर में गहरे आक्रोश और निराशा को जन्म दिया है। एक स्कूल के परिसर में दो छोटी बच्चियों के साथ हुए यौन दुर्व्यवहार के मामले में पुलिस की कर्तव्यहीनता ने आग में घी का काम किया। इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए सैकड़ों नागरिकों और अभिभावकों ने शहर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए, जिनमें उन्होंने रेल यातायात को अवरुद्ध कर दिया। इस जनाक्रोश के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र सरकार को तत्काल तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने के आदेश देने पड़े।
घटना 17 अगस्त की है, जब बदलापुर के एक स्कूल में किंडरगार्टन की तीन और चार साल की दो बच्चियों के साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार किया गया। यह अपराध स्कूल के शौचालय में हुआ, जहाँ लड़कियों के साथ कथित रूप से एक पुरुष सफाईकर्मी ने दुर्व्यवहार किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्कूल में कोई महिला सफाईकर्मी नियुक्त नहीं थी, जिससे यह घटना और भी गंभीर हो जाती है। इस जघन्य अपराध का खुलासा तब हुआ जब एक बच्ची ने अपने निजी अंगों में दर्द की शिकायत की। माता-पिता ने तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया, जिन्होंने पुष्टि की कि बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है।

इस घटना के बाद पुलिस की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठे। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने आरोप लगाया कि पीड़ित बच्चियों के माता-पिता को बदलापुर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने के लिए 11 घंटे तक इंतजार करना पड़ा। उन्होंने पुलिस की इस लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई और मांग की कि इस देरी के लिए जिम्मेदार महिला पुलिस अधिकारी को तत्काल निलंबित किया जाए। वडेट्टीवार का यह बयान पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है कि क्या ऐसी परिस्थितियों में कोई संवेदनशीलता शेष रह गई है?
घटना की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने त्वरित कार्रवाई की और तीन पुलिस अधिकारियों - वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक, सहायक उप-निरीक्षक, और हेड कांस्टेबल को कर्तव्यहीनता के लिए तत्काल निलंबित कर दिया। इस कार्रवाई के साथ ही सरकार ने आरोपों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन भी किया है। उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर घोषणा की कि इस घटना की जांच को प्राथमिकता दी जा रही है और इसे फास्ट-ट्रैक कोर्ट में चलाने के लिए प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी सफाईकर्मी को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस की इस त्वरित कार्रवाई के बावजूद, जनता में गुस्सा और असंतोष बरकरार है। इस जनाक्रोश का एक बड़ा कारण यह है कि इस घटना के बाद भी पुलिस की प्राथमिकता में देरी नजर आई, जिससे जनता में सुरक्षा और न्याय के प्रति विश्वास कम हुआ है। गुस्साए अभिभावकों और नागरिकों ने स्कूल परिसर में भी तोड़फोड़ की, जिसमें खिड़कियों के शीशे, बेंच और दरवाजे तोड़ दिए गए। इसके साथ ही स्कूल प्रबंधन ने इस घटना के लिए प्रिंसिपल, एक क्लास टीचर और एक महिला अटेंडेंट को भी निलंबित कर दिया है।
राज्य की विपक्षी पार्टियों ने भी इस घटना को लेकर सरकार पर निशाना साधा। शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि इस घटना से पूरा राज्य आक्रोशित है और न्याय की मांग कर रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति भवन से महाराष्ट्र शक्ति आपराधिक कानून को मंजूरी देने का आग्रह करते हुए कहा कि इस कानून से भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकेगा। उन्होंने राज्य सरकार पर महिलाओं की सुरक्षा की अनदेखी का आरोप लगाया और कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानूनों की आवश्यकता है।
इस पूरे मामले ने न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राज्य स्तर पर भी कानून व्यवस्था और प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। पुलिस की लापरवाही, सरकार की त्वरित कार्रवाई और जनता के आक्रोश ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। अब देखना यह होगा कि एसआईटी की जांच में क्या नतीजे सामने आते हैं और सरकार इस मामले को कितनी प्राथमिकता देती है। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जनता की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था को हमेशा चौकस और संवेदनशील रहना चाहिए।
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