बदायूँ में बुद्ध महोत्सव: प्रेम, अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का अद्वितीय उत्सव नवम्बर में इस तारीख को भव्य तरीके से आयोजित किया जायेगा
सम्राट अशोक बुद्ध विहार, ग्राम भिलौलिया सत्यपुर में आयोजित बुद्ध महोत्सव न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह बुद्ध के विचारों का प्रचार करने और समाज में एकता, प्रेम और सहिष्णुता के सिद्धांतों को फैलाने का भी प्रयास है। इस महोत्सव में विभिन्न प्रदेशों से विद्वान वक्ता और बौद्ध अनुयायी भाग लेते हैं, जिससे यह आयोजन एक गहन अनुभव और सीखने का अवसर बन जाता है।

INDC Network : उत्तर प्रदेश : बदायूँ के तहसील बिसोली के ग्राम भिलौलिया सत्यपुर में प्राचीन बुद्ध खेड़ा, जो अपने ऐतिहासिक महत्त्व के लिए जाना जाता है, इस वर्ष भी बुद्ध महोत्सव एवं भव्य मेला का आयोजन किया जा रहा है। यह महोत्सव तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक कालीन मूर्तियों एवं अवशेषों के स्मरण में मनाया जाता है। कार्यक्रम में प्रदेश के अन्य हिस्सों से भी विद्वान वक्ता आपका मार्गदर्शन करने हेतु पधारेंगे। इस महोत्सव में लोग अपने परिवार एवं मित्रों सहित आते हैं और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का सम्मान करते हैं। इस महोत्सव का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में एकता, प्रेम और सहिष्णुता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने का भी कार्य करेगा।
बुद्ध महोत्सव एवं भव्य मेला का आयोजन
स्थान: सम्राट अशोक बुद्ध विहार, ग्राम भिलौलिया सत्यपुर, बदायूँ, उत्तर प्रदेश
दिनांक: 05 नवम्बर 2024 से 07 नवम्बर 2024 तक
कार्यक्रम विवरण:
धम्म यात्रा: दिनांक: 05 नवम्बर 2024, मंगलवार
समय: सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक
धम्म प्रवचन: प्रतिदिन 1 घंटा
एक शाम तथागत के नाम:
दिनांक: 07 नवम्बर 2024, गुरुवार
समय: सायं 7 बजे से सुबह 6 बजे तक
अंध विश्वास और पांखंडवाद पर जादूगर जे.के. सागर की प्रस्तुति: प्रतिदिन
बुद्ध लीला: बौद्ध धम्म प्रचार एवं समाज सुधारक नाट्य कला मण्डल लखीमीपुर खीरी
समय: दोपहर 12 बजे से सायं 5 बजे तक एवं रात्रि 8 बजे से रात्रि 1 बजे तक
अध्यक्ष: जय प्रकाश शाक्य (मोबाइल: 9761481923), कोषाध्यक्ष: नरेंद्र मौर्य (मोबाइल: 8218799098), महासचिव: वेदपाल मौर्य (मोबाइल: 9997100677), सचिव: धर्मवीर शाक्य (मोबाइल: 9720539686), सह सचिव: महेश चन्द्र मौर्य(मोबाइल: 9536178282), संचालक: सुरज पाल शाक्य (मोबाइल: 9720884891), विधिक सलाहकार: एड. भूप सिंह शाक्य (मोबाइल: 8077043100), उपाध्यक्ष: हरी शंकर शाक्य (मोबाइल: 9758195119)
सदस्य: जसवीर शाक्य (मोबाइल: 9927526551) ,हरी शंकर शाक्य (मोबाइल: 9758195119), प्रेम शाक्य (मोबाइल: 9760161442), रघुराज शाक्य (मोबाइल: 9675521342), आकाश शाक्य (मोबाइल: 8279762935), धीरेन्द्र शाक्य (मोबाइल: 8954117751), गोपाल शाक्य (मोबाइल: 8192071367), एड. राजेश भारती (मोबाइल: 7351663712), वीरेश शाक्य (मोबाइल: 9761928527), गोपाल शाक्य (मोबाइल: 8859092268)
आयोजक: यह कार्यक्रम मिलौलिया बुद्ध विकास ट्रस्ट (रजि.) और समस्त ग्रामवासी मिलकर आयोजित कर रहे हैं।
सम्राट अशोक ने 84000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण क्यों कराया था ?
सम्राट अशोक, जो मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं। उनका शासनकाल 268 से 232 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है, और उनके कार्यों ने भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म को गहराई से प्रभावित किया। सम्राट अशोक ने 84,000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया था, जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना और इसके सिद्धांतों को व्यापक रूप से फैलाना था।
- बौद्ध धर्म का उदय : सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव उस समय आया जब उन्होंने कंधार में कलिंग युद्ध लड़ा। इस युद्ध में कई निर्दोष नागरिकों की मृत्यु हुई, और यह युद्ध उनकी आत्मा को गहराई से प्रभावित किया। युद्ध की विभीषिका ने उन्हें अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों की ओर आकर्षित किया। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसके प्रचार के लिए कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया।
- स्तूपों का निर्माण : 84,000 स्तूपों का निर्माण बौद्ध धर्म के चार प्रमुख सिद्धांतों को फैलाने के उद्देश्य से किया गया था। ये स्तूप बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण स्थल थे, जहाँ बौद्ध तीर्थयात्री आकर ध्यान, पूजा और उपासना करते थे। प्रत्येक स्तूप बौद्ध धर्म के किसी न किसी तत्व को समर्पित था, जैसे कि भगवान बुद्ध की पवित्र अवशेषों या उनके शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व।
- अहिंसा और सामाजिक एकता : सम्राट अशोक का मानना था कि बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को फैलाने से समाज में अहिंसा, प्रेम और सहिष्णुता का प्रचार होगा। उन्होंने अपने स्तूपों के माध्यम से न केवल बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि समाज में सभी धर्मों और विचारधाराओं का सम्मान होना चाहिए। यह एकता और सहिष्णुता की भावना को प्रोत्साहित करने का प्रयास था, जिससे सामाज में समरसता बढ़े।
- प्रचार-प्रसार का माध्यम : अशोक ने स्तूपों को बौद्ध धर्म के प्रचार का माध्यम बनाया। उन्होंने विभिन्न देशों में बौद्ध भिक्षुओं को भेजा, ताकि वे वहां के लोगों को बौद्ध धर्म की शिक्षाएं समझा सकें। ये स्तूप बौद्ध धर्म के प्रति एक आकर्षण का केंद्र बन गए, जहाँ लोग आकर ध्यान करते, भिक्षुओं से उपदेश सुनते और धर्म के प्रति अपनी आस्था को मजबूत करते।
- सांस्कृतिक विरासत : सम्राट अशोक का 84,000 स्तूपों का निर्माण न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है। इन स्तूपों ने बौद्ध वास्तुकला को एक नई दिशा दी और भारत में बौद्ध धर्म को स्थायी रूप से स्थापित किया। इन स्तूपों की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी यहां आए, जिससे विभिन्न सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ।
सम्राट अशोक का 84,000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण उनके धर्म परिवर्तन और बौद्ध धर्म के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा को दर्शाता है। यह कदम न केवल बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए था, बल्कि समाज में अहिंसा, प्रेम और सहिष्णुता के सिद्धांतों को स्थापित करने के लिए भी महत्वपूर्ण था। आज भी, अशोक के स्तूप भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और बौद्ध धर्म की गहरी जड़ों को दर्शाते हैं। उनकी दृष्टि और कार्यों ने भारतीय संस्कृति और समाज को स्थायी रूप से प्रभावित किया है।
तथागत बुद्ध का सम्राट अशोक के बौद्ध स्तूपों से क्या सम्बन्ध है ?
तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक के बौद्ध स्तूपों के बीच गहरा और महत्वपूर्ण संबंध है। यह संबंध मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के प्रचार, बौद्ध अवशेषों के संरक्षण, और बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार से जुड़ा हुआ है। यहाँ इस संबंध को विस्तार से समझाया गया है:
- बौद्ध धर्म का उदय : तथागत बुद्ध, जिन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है, ने 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म की स्थापना की। उनके उपदेशों में करुणा, अहिंसा, और ध्यान का महत्व है, जिसने उस समय के समाज में गहरी छाप छोड़ी। बुद्ध ने अपने जीवन के अंतिम चरण में विभिन्न स्थानों पर उपदेश दिए और उनके उपदेशों को सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे।
- सम्राट अशोक का धर्म परिवर्तन : सम्राट अशोक, जो मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे, ने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसके प्रचार में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। कलिंग युद्ध के बाद, जब उन्होंने युद्ध की भयावहता को अनुभव किया, तब उन्होंने अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों को अपनाया और बुद्ध के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया।
- स्तूपों का निर्माण और बुद्ध के अवशेष : सम्राट अशोक ने 84,000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया, जिनका उद्देश्य बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करना और बुद्ध के अवशेषों को संरक्षित करना था। इन स्तूपों में बुद्ध के अवशेष, जैसे कि उनके शरीर के हिस्से, वस्त्र, और अन्य पवित्र सामग्री रखी गई। ये स्तूप बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थल बने, जहाँ वे पूजा और ध्यान करते थे।
- बुद्ध के संदेश का प्रचार : सम्राट अशोक ने बौद्ध स्तूपों के माध्यम से बुद्ध के संदेश को व्यापक रूप से फैलाने का कार्य किया। उन्होंने विभिन्न देशों में बौद्ध भिक्षुओं को भेजा ताकि वे बुद्ध की शिक्षाओं को वहां के लोगों तक पहुंचा सकें। इस प्रकार, बौद्ध स्तूप न केवल धार्मिक महत्व रखते थे, बल्कि यह बुद्ध के सिद्धांतों के प्रचार का माध्यम भी बने।
- सांस्कृतिक और धार्मिक एकता : अशोक के स्तूपों ने बौद्ध धर्म को एक सांस्कृतिक पहचान प्रदान की। इन स्तूपों के निर्माण के साथ, बौद्ध धर्म ने भारत और उसके बाहर विभिन्न संस्कृतियों में अपनी जगह बनाई। अशोक ने बौद्ध धर्म को राजकीय समर्थन दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि बुद्ध के उपदेश समाज के हर वर्ग तक पहुँचें।
तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक के बौद्ध स्तूपों के बीच का संबंध न केवल धार्मिक है, बल्कि यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी है। बुद्ध के जीवन और शिक्षाएं सम्राट अशोक के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं, जिसने उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म के प्रचार और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार, सम्राट अशोक के बौद्ध स्तूप, बुद्ध की शिक्षाओं के संरक्षण और प्रचार के प्रतीक बन गए, जो आज भी भारतीय और वैश्विक बौद्ध संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
संकिसा बुद्ध महोत्सव किस वजह से मनाया जाता है ?
संकिसा बुद्ध महोत्सव, जो उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम है। यह महोत्सव मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है और इसका उद्देश्य बुद्ध की शिक्षाओं, उनके जीवन, और बौद्ध संस्कृति को सम्मानित करना है। संकिसा का विशेष महत्व इस वजह से है:
- बुद्ध का जीवन और संदेश : संकिसा वह स्थान है जहाँ पर यह माना जाता है कि तथागत बुद्ध ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए थे। यह जगह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थल के रूप में जानी जाती है, और यहां बुद्ध के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट की जाती है।
- उपदेशों का प्रचार : संकिसा बुद्ध महोत्सव का आयोजन बुद्ध के जीवन, उनके उपदेशों और उनके द्वारा फैलाए गए अहिंसा, करुणा, और सहिष्णुता के सिद्धांतों को लोगों के बीच प्रचारित करने के लिए किया जाता है। यह महोत्सव बौद्ध धर्म के अनुयायियों को एकत्रित करता है, जिससे वे अपनी आस्था और विश्वास को साझा कर सकें।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम : इस महोत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि नृत्य, संगीत, और नाटक, जो बुद्ध की शिक्षाओं और बौद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं। यह कार्यक्रम न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि समाज में बौद्ध धर्म के प्रति जागरूकता फैलाने में भी सहायक होते हैं।
- धार्मिक अनुष्ठान : संकिसा बुद्ध महोत्सव में श्रद्धालु विशेष धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जैसे कि प्रार्थना, ध्यान, और पूजा। ये अनुष्ठान बुद्ध के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम होते हैं। साथ ही, यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक अवसर होता है कि वे अपने विश्वास को मजबूती से व्यक्त कर सकें।
- समुदाय की एकता : यह महोत्सव बौद्ध धर्म के अनुयायियों के बीच एकता और सामूहिकता का प्रतीक है। यहां बौद्ध समुदाय के लोग एकत्र होते हैं, जिससे वे एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव और विचार साझा कर सकते हैं। यह एकता समाज में प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देती है।
संकिसा बुद्ध महोत्सव एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह महोत्सव बुद्ध के उपदेशों के प्रचार, सांस्कृतिक उत्सवों, और समुदाय की एकता को प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार, संकिसा बुद्ध महोत्सव न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि समाज में अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों के प्रसार के लिए भी महत्वपूर्ण है।
संकिसा बुद्ध महोत्सव से प्रेरित होकर और तथागत बुद्ध के विचारों को जन जन तक पहुँचाने के लिए सम्राट अशोक बुद्ध विहार, ग्राम भिलौलिया सत्यपुर, बदायूँ, उत्तर प्रदेश में भी आयोजकों और बुद्ध अनुयायियों द्वारा इस मेला या बुद्ध महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, यह सिर्फ एक एक मेला नहीं बल्कि कार्यक्रमों के दौरान बुद्ध की शिक्षाओं को मंच से जन जन तक पहुँचाया जाता हैं| प्रदेश के कई हिस्सों से बौद्ध अनुयायी यहाँ आते हैं।
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