संत कबीरदास कौन थे? और उनका साहित्यिक, धार्मिक और सामाजिक योगदान क्या है? विस्तार से जानिए ....

संत कबीर 15वीं सदी के महान कवि, संत और समाज सुधारक थे। उन्होंने काशी (वाराणसी) में जन्म लिया और अपना जीवन एक जुलाहा के रूप में व्यतीत किया। उनके विचार और शिक्षाएँ समाज में व्याप्त कुरीतियों, पाखंड और अंधविश्वास का विरोध करती थीं। कबीर ने सरल और प्रभावशाली भाषा में कविताएँ, दोहे और भजन लिखे जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने धार्मिक भेदभाव, जाति-पाँति और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई और सच्ची भक्ति और प्रेम की महत्ता बताई। उनके प्रसिद्द दोहे और पंक्तियाँ समाज को सत्य, प्रेम और समानता का संदेश देती हैं।

Jun 22, 2024 - 16:00
Jun 26, 2024 - 18:03
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संत कबीरदास कौन थे? और उनका साहित्यिक, धार्मिक और सामाजिक योगदान क्या है? विस्तार से जानिए ....

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संत कबीर: जीवन परिचय और योगदान

जीवन परिचय:-

संत कबीर, 15वीं सदी के महान कवि, संत, और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 1398 में हुआ था और 1518 में उनका देहांत हुआ। उनके जन्म स्थान को लेकर विभिन्न मत हैं, लेकिन माना जाता है कि वे काशी (वर्तमान वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में जन्मे थे। उनके माता-पिता के बारे में भी अलग-अलग मत हैं; कुछ लोग उन्हें नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति का पुत्र मानते हैं।

कबीर का जीवन साधारण परंतु प्रेरणादायक था। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन बनारस (वर्तमान वाराणसी) में बिताया और जुलाहा (बुनकर) का कार्य किया। वे हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों की मान्यताओं का विरोध करते थे और धर्म की बाह्याडंबर, पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ थे।

शिक्षा और विचारधारा:- 

कबीर ने किसी औपचारिक शिक्षा का अध्ययन नहीं किया था, लेकिन उन्होंने अपने जीवन अनुभव और ज्ञान के माध्यम से गहरी आध्यात्मिकता प्राप्त की। वे गुरु रामानंद के शिष्य माने जाते हैं, जिनसे उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। कबीर का उद्देश्य धर्म के बाह्य आडंबरों और कर्मकांडों की आलोचना करना और सच्ची भक्ति और प्रेम को महत्व देना था।

योगदान

  1. साहित्यिक योगदान:

    • कविता और दोहे: कबीर ने अपनी कविताओं, दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों और पाखंड का विरोध किया। उनके दोहे आज भी लोकप्रिय हैं और विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हो चुके हैं। उनके रचनाओं में सरल भाषा, सटीकता, और गहरी आध्यात्मिकता देखने को मिलती है।
    • रचनाएँ: उनकी प्रमुख रचनाओं में 'बीजक' और 'साखी' शामिल हैं। ये रचनाएँ कबीर की सोच और विचारधारा का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
  2. धार्मिक और सामाजिक सुधार:

    • समाज सुधारक: कबीर ने समाज में व्याप्त जाति-पाँति, छुआछूत और धार्मिक भेदभाव का कड़ा विरोध किया। उन्होंने एकता और समानता की बात की और मानवता को सबसे ऊपर रखा।
    • धार्मिक समन्वय: उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के पाखंडों की आलोचना की और एक नये धर्म का प्रचार किया, जिसे 'संत मत' के नाम से जाना जाता है। उनकी शिक्षाओं में राम और अल्लाह के प्रति समान भक्ति और प्रेम की बात की गई है।
    • सत्य की खोज: कबीर ने अपनी रचनाओं में सत्य, प्रेम, और अहिंसा का संदेश दिया। उन्होंने ज्ञान की महत्ता पर जोर दिया और आत्मानुभव को सबसे महत्वपूर्ण माना।
  3. प्रभाव और लोकप्रियता:

    • लोकप्रियता: कबीर के दोहे और भजन भारत के विभिन्न हिस्सों में बेहद लोकप्रिय हैं। वे आज भी प्रासंगिक हैं और उनकी शिक्षाएँ समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना करती हैं।
    • कबीर पंथ: कबीर की शिक्षाओं से प्रभावित होकर 'कबीर पंथ' की स्थापना हुई। यह पंथ आज भी उनके विचारों और शिक्षाओं का अनुसरण करता है और समाज में उनके संदेश का प्रचार-प्रसार करता है।

निष्कर्ष :-

संत कबीर एक महान कवि और समाज सुधारक थे जिनकी शिक्षाएँ और रचनाएँ आज भी समाज में प्रासंगिक हैं। उन्होंने समाज को अंधविश्वास, जाति-पाँति और धार्मिक भेदभाव से मुक्त करने का प्रयास किया और मानवता, प्रेम और सत्य की राह पर चलने का संदेश दिया। उनके योगदान को न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और धार्मिक सुधार के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कबीर की शिक्षाएँ आज भी हमें सत्य, प्रेम और समानता का महत्व समझाती हैं और समाज को बेहतर बनाने की प्रेरणा देती हैं।


संत कबीर की प्रसिद्द पंक्तियाँ उनके गहरे आध्यात्मिक और समाज सुधारक विचारों का प्रतिबिंब हैं। यहाँ कुछ प्रसिद्द पंक्तियाँ दी जा रही हैं:

1. माया महाठगिनी हम जानी।
    तिरगुन फांस लिए कर डोलै बोले मधुरी बानी॥
अर्थ: माया (भौतिकता) सबसे बड़ी ठग है, मैंने इसे पहचान लिया है। यह तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) के फंदों को लेकर घूमती है और मीठी बातें बोलती है।

2. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
    सार-सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय॥
अर्थ: साधु (सज्जन व्यक्ति) ऐसा होना चाहिए जैसे सूप (धान छानने का उपकरण)। जो सार (महत्वपूर्ण) को रख ले और थोथा (बेकार) को उड़ा दे।

3. गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
   बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय॥
अर्थ: गुरु और भगवान दोनों सामने खड़े हैं, मैं किसके चरण स्पर्श करूं? मैं गुरु को नमन करता हूँ, जिन्होंने मुझे भगवान से मिलाया।

4. कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी चाहे खैर।
    ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥
अर्थ: कबीर बाजार में खड़ा है, सबकी भलाई चाहता है। ना किसी से दोस्ती, ना किसी से दुश्मनी।

5. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
अर्थ: किताबें पढ़ते-पढ़ते दुनिया मर गई, लेकिन कोई विद्वान नहीं बना। जो प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ लेता है, वही सच्चा विद्वान है।

6. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
अर्थ: चलते हुए चक्की को देखकर कबीर रो पड़े। दो पाटों के बीच में कोई साबुत नहीं बचता, सब पिस जाता है।

7. झीनी झीनी बीनी चदरिया।
    काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया॥
अर्थ: यह चादर (शरीर) बहुत बारीक बुनी हुई है। इसे किस ताने और भरनी से बुना गया है, किस धागे से बुनी गई है।

8. जो सुख साधु संग में, सो सुख नाहीं अम्बर महि।
    जो सुख अम्बर माहीं, सो सुख नाहीं साधु संग में॥
अर्थ: जो सुख साधु (सज्जन) के संग में है, वह सुख स्वर्ग में भी नहीं है। और जो सुख स्वर्ग में है, वह सुख साधु के संग में नहीं है।

9. पानी बिन मीन प्यासी, मोहि सुन-सुन आवै हांसी।
   अर्थात मुर्ख लोग समझते नहीं और बिना भगवान के नित पीड़ित होते रहते हैं॥
अर्थ: पानी के बिना मछली प्यासी होती है, इसे सुन-सुनकर मुझे हंसी आती है। मतलब, मुर्ख लोग यह नहीं समझते कि भगवान के बिना वे पीड़ित हैं।

10. मन लागो मेरो यार फकीरी में।
      हरि सेठ हमारे रे, घर मालिक है॥
अर्थ: मेरा मन फकीरी (साधुता) में लग गया है। हरि (भगवान) हमारे सेठ हैं, घर के मालिक हैं।

संत कबीर की ये पंक्तियाँ उनके विचारों, दर्शन और समाज सुधारक दृष्टिकोण को सरल और संजीदा भाषा में प्रस्तुत करती हैं। उनका साहित्यिक योगदान आज भी लोगों को प्रेरित करता है और सत्य, प्रेम और मानवता के मार्ग पर चलने का संदेश देता है।

आप संत कबीर जी के बारे में क्या सोचते हैं? हमें कमेंट करके जरुर बताएं .....

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