सुप्रीम कोर्ट का सुझाव: मुफ्त राशन की बजाय रोजगार सृजन पर हो जोर
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मुफ्त राशन योजनाओं की स्थिरता पर सवाल उठाते हुए रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया है। न्यायालय ने राज्यों की वित्तीय जिम्मेदारी बढ़ाने और दीर्घकालिक समाधान पर जोर दिया।

INDC Network : नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट का सुझाव: मुफ्त राशन की बजाय रोजगार सृजन पर हो जोर
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण बयान
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मुफ्त राशन योजनाओं की जगह रोजगार सृजन को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया। न्यायालय ने कहा कि मुफ्त राशन योजनाएं दीर्घकालिक समाधान नहीं हैं और इनसे राज्यों की जिम्मेदारी कम हो सकती है।
मुफ्त राशन योजना: आंकड़े और वित्तीय बोझ
आयाम | विवरण |
---|---|
लाभार्थियों की संख्या | 80 करोड़ नागरिक (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत) |
आपूर्ति सामग्री | मुफ्त गेहूं और चावल |
न्यायालय का सवाल | राज्यों को राशन की वित्तीय जिम्मेदारी क्यों नहीं दी जाती? |
सुझाव | रोजगार सृजन को प्राथमिकता दें |
न्यायालय की टिप्पणियां
- राज्यों की भूमिका:
न्यायालय ने कहा कि यदि राज्यों से मुफ्त राशन प्रदान करने को कहा जाए, तो कई वित्तीय संकट का हवाला देंगे। - स्थिरता का प्रश्न:
मुफ्त राशन योजना एक बड़ी आबादी के लिए लागू करना दीर्घकालिक रूप से अस्थिर है। - विकल्प:
न्यायालय ने सुझाव दिया कि राज्यों को अपनी आर्थिक और रोजगार नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
सरकार की प्रतिक्रिया
भारत के सॉलिसिटर जनरल, तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि वर्तमान में केंद्र सरकार 80 करोड़ गरीब नागरिकों को मुफ्त गेहूं और चावल प्रदान करती है।
रोजगार सृजन: दीर्घकालिक समाधान का आग्रह
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रोजगार सृजन से न केवल गरीबी कम होगी, बल्कि नागरिकों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी मिलेगा। यह सुझाव दिया गया कि राज्यों को आर्थिक विकास और रोजगार योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट का यह सुझाव मुफ्त राशन योजनाओं और रोजगार सृजन पर एक नई बहस छेड़ता है। सरकार को दीर्घकालिक आर्थिक समाधान की ओर कदम बढ़ाने चाहिए, जिससे नागरिकों का सशक्तिकरण और देश की आर्थिक प्रगति सुनिश्चित हो सके।
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