सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: धर्मांतरण के आधार पर आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि धर्मांतरण केवल आरक्षण का लाभ उठाने के लिए किया गया हो, तो इसे संविधान और न्यायपालिका मान्यता नहीं दे सकते। कोर्ट ने पुदुचेरी की एक महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि किसी धर्म को वास्तविक आस्था के बिना अपनाना संविधान के साथ धोखाधड़ी है।

INDC Network : नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: धर्मांतरण के आधार पर आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के 24 जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली सी. सेल्वरानी की याचिका खारिज कर दी।

- याचिकाकर्ता महिला ने अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ उठाने के लिए अपने धर्मांतरण को वैध ठहराने की मांग की थी।
- कोर्ट ने कहा कि महिला नियमित रूप से चर्च जाती है और ईसाई धर्म की परंपराओं का पालन करती है। ऐसे में वह खुद को हिंदू बताकर अनुसूचित जाति के आरक्षण का दावा नहीं कर सकती।
धर्मांतरण और आरक्षण का संबंध
कोर्ट ने यह भी कहा कि धर्मांतरण केवल आरक्षण का लाभ उठाने के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए।
- धर्मांतरण तब ही मान्य हो सकता है जब वह किसी व्यक्ति की सच्ची आस्था और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हो।
- आरक्षण नीति का उद्देश्य सामाजिक सुधार है, और इसे अनुचित तरीकों से प्राप्त करना नीति के उद्देश्य को हानि पहुंचाता है।
संविधान और धर्म की स्वतंत्रता
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को अपनी मर्जी से धर्म और आस्था चुनने की आज़ादी है।
- लेकिन यह स्वतंत्रता आरक्षण जैसी सुविधाओं का अनुचित लाभ उठाने के लिए नहीं हो सकती।
- कोर्ट ने कहा कि यह संविधान और न्यायपालिका के सिद्धांतों के विपरीत है।
महिला की याचिका खारिज
पुदुचेरी की सेल्वरानी ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र मांगते हुए जिला प्रशासन को निर्देश देने की गुहार लगाई थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि महिला का दोहरा दावा अस्वीकार्य है।
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