क्या 2027 में होगा उत्तर प्रदेश का बंटवारा? परिसीमन के बाद बदल सकता है भविष्य
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा राज्य, 2027 के परिसीमन और जनगणना के बाद ऐतिहासिक बदलाव का सामना कर सकता है। राज्य की 25 करोड़ से अधिक जनसंख्या और संभावित सीट वृद्धि बंटवारे की मांग को फिर से बढ़ा सकती है। राजनीतिक विश्लेषक, विशेषज्ञ और नेता इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, जिससे यूपी को तीन राज्यों में विभाजित करने की संभावना पर बहस शुरू हो गई है।

INDC Network : उत्तरप्रदेश : क्या 2027 में होगा उत्तर प्रदेश का बंटवारा? परिसीमन के बाद बदल सकता है भविष्य
यूपी 2027 में क्या होगा?
उत्तर प्रदेश की आबादी अगले साल जनगणना के बाद 25 करोड़ को पार कर जाएगी। इसके बाद 2027 में परिसीमन प्रस्तावित है, जो लोकसभा और विधानसभा सीटों को बढ़ा सकता है। क्या यह भारत के सबसे बड़े राज्य को तीन अलग-अलग राज्यों में विभाजित करने का आधार बनेगा? जानिए, इस ऐतिहासिक बदलाव के पीछे के कारण और संभावनाएं।
2025 में होगी जनगणना
2025 में प्रस्तावित जनगणना यूपी की जनसंख्या का नया आंकड़ा प्रस्तुत करेगी।
- मौजूदा अनुमानित जनसंख्या: 24 करोड़।
- 2025 के बाद जनसंख्या: 25 करोड़ से अधिक।
दुनिया के संदर्भ में:
यदि यूपी एक देश होता, तो चीन, अमेरिका, इंडोनेशिया, और पाकिस्तान के बाद यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश होता।
2027 में प्रस्तावित परिसीमन
2027 में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसका आधार 2025 की जनगणना होगी।
- मौजूदा विधानसभा सीटें: 403।
- मौजूदा लोकसभा सीटें: 80।
- परिसीमन के बाद अनुमानित वृद्धि:
- विधानसभा सीटें: 500 तक।
- लोकसभा सीटें: 100-110।
विधानसभा और लोकसभा सीटों का अनुमानित डेटा
वर्तमान सीटें | परिसीमन के बाद सीटें |
---|---|
विधानसभा सीटें (403) | 500+ |
लोकसभा सीटें (80) | 100-110 |
क्या यूपी का बंटवारा होगा?
संभावित नए राज्य
प्रस्तावित राज्य | राजधानी | अंतरगत जिले |
---|---|---|
उत्तर प्रदेश | लखनऊ | 20 जिलों तक (सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, कानपुर आदि)। |
बुंदेलखंड | प्रयागराज | 17 जिले (चित्रकूट, बांदा, महोबा आदि)। |
पूर्वांचल | गोरखपुर | 22 जिले (गोरखपुर, बलिया, कुशीनगर, आजमगढ़ आदि)। |
क्यों है बंटवारे की जरूरत?
- बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण विकास और प्रशासन की चुनौती।
- छोटे राज्यों का बेहतर प्रबंधन और विकास (झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ जैसे उदाहरण)।
राज्य | राजधानी | जिले |
---|---|---|
उत्तर प्रदेश | लखनऊ | सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, बदायूं, शाहजहांपुर, इटावा, कानपुर, उन्नाव, हरदोई, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, रायबरेली, बाराबंकी, फैजाबाद (कुल: 20 जिले) |
ब्रजभूमि | प्रयागराज | चित्रकूट, बांदा, महोबा, झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद (कुल: 17 जिले) |
पूर्वांचल | गोरखपुर | आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर (कुल: 22 जिले) |
नोट:
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
- सहारनपुर मंडल और मेरठ मंडल जिले हरियाणा राज्य में शामिल किए जाएंगे।
- गाजियाबाद, बुलंदशहर, रामपुर, मुरादाबाद, और अन्य जिलों को नए राज्यों में पुनर्व्यवस्थित किया जाएगा।
राजनीतिक दलों और नेताओं की राय
मायावती सरकार का प्रस्ताव (2011)
- 4 छोटे राज्यों का सुझाव:
- हरित प्रदेश
- अवध प्रदेश
- बुंदेलखंड
- पूर्वांचल
भाजपा का रुख
- छोटे राज्यों के पक्ष में:
2000 में एनडीए सरकार के तहत उत्तराखंड, झारखंड, और छत्तीसगढ़ का गठन। - फायदे का गणित:
यदि राजनीतिक लाभ होगा, तो भाजपा छोटे राज्यों का गठन कर सकती है।
सपा का विरोध
- अखंड उत्तर प्रदेश का समर्थन।
- बंटवारे से सपा के यादव और मुस्लिम वोट बैंक के कमजोर होने का डर।
अन्य नेताओं का मत
नेता | मूल विचार |
---|---|
राजनाथ सिंह | यूपी का बंटवारा अनावश्यक। जनसंख्या को बोझ नहीं, संसाधन माना जाना चाहिए। |
संजीव बालियान | छोटे राज्यों का समर्थन। बेहतर विकास के लिए बंटवारा आवश्यक। |
उमा भारती | बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग। |
परिसीमन के बाद नई संभावनाएं
वन नेशन, वन इलेक्शन की मदद
- यूपी के तीन राज्यों में विभाजन से चुनाव प्रक्रियाओं को समन्वयित करने में मदद मिलेगी।
- 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ इन नए राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं।
विधानसभा में स्थान की कमी
- मौजूदा यूपी विधानसभा में 403 सीटों के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है।
- परिसीमन के बाद 500 सीटों के लिए नई व्यवस्था की जरूरत होगी।
बंटवारे के लिए केंद्र की भूमिका
- संसदीय और विधि विशेषज्ञों की राय:
यूपी का बंटवारा करने के लिए केंद्र सरकार को यूपी विधानसभा से प्रस्ताव की आवश्यकता नहीं है। - लोकसभा-विधानसभा सीटों को फ्रीज करना:
यदि सीटें फ्रीज कर दी जाती हैं, तो बंटवारे की जरूरत नहीं होगी।
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्रनाथ भट्ट
- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूपी का बंटवारा नहीं चाहते।
- परिसीमन के बाद बंटवारे का निर्णय उनके समर्थन के बिना संभव नहीं।
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय
- यूपी का बंटवारा 1952 से चर्चा में है।
- 2000 में उत्तराखंड का गठन, लेकिन पूर्वांचल और हरित प्रदेश की मांग लंबित।
उत्तर प्रदेश का बंटवारा 2027 के परिसीमन के बाद एक बड़ी संभावना बन सकता है। हालांकि, यह पूरी तरह से राजनीतिक इच्छाशक्ति और लाभ-हानि के गणित पर निर्भर करेगा। यूपी का विभाजन एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है, जिससे न केवल बेहतर प्रबंधन बल्कि राजनीतिक संतुलन भी स्थापित हो सकता है।
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