सच से डरी सत्ता: यूट्यूब चैनलों पर कार्रवाई के पीछे सत्ता की घबराहट का पर्दाफाश
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूट्यूब चैनलों और लोकगायिकाओं पर की जा रही कार्रवाई को लोकतंत्र की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। उन्होंने कहा कि यह डर की निशानी है और इसका उद्देश्य जनता के बीच अस्वीकार हो चुके न्यूज चैनलों को बचाना है।

INDC Network : उत्तर प्रदेश : ‘डर’ और ‘पाबंदी’: सत्ता की बौखलाहट का नया चेहरा
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक लंबा और तीखा बयान जारी किया। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह लोकप्रिय यूट्यूब चैनलों को बंद करवा रही है और लोकगायिकाओं पर एफआईआर करा रही है। यह सब केवल उन बड़े न्यूज चैनलों को बचाने के लिए किया जा रहा है जो पूरी तरह सत्ता के नालबद्ध हो चुके हैं।

‘जिसका दाना, उसका गाना’: बिक चुकी पत्रकारिता का आलम
अखिलेश यादव ने अपने पोस्ट में कहा, "जिसका दाना, उसका गाना" आज की पत्रकारिता का असली सिद्धांत बन गया है। बड़े न्यूज चैनल जो सत्ता के प्रचारक बन चुके हैं, अब खुद संकट में हैं। उनकी टीआरपी गिर रही है, दर्शक उनसे दूरी बना रहे हैं और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर लोग सच्चाई की आवाज़ सुन रहे हैं।
लोकप्रिय चैनलों को निशाना क्यों?
उन्होंने सवाल उठाया कि आखिरकार लोकप्रिय यूट्यूब चैनलों और लोकगायिकाओं को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? इसका सीधा कारण यह है कि इन चैनलों ने सत्ता के प्रचार से इंकार किया और जनता के मुद्दे उठाए। इसीलिए आज वो सत्ता की आंखों में खटक रहे हैं।
‘मूर्खता की डेली डोज़’: टीवी चैनलों की साख पर सवाल
अखिलेश ने मुख्यधारा के कुछ टीवी चैनलों को "मूर्खता की डेली डोज़" परोसने वाला बताया। उन्होंने कहा कि ये चैनल केवल दो लोगों के बीच आग लगाकर बहस करते हैं, अपशब्द कहने वालों को मंच देते हैं और फिर दर्शकों को भ्रमित करते हैं।
पत्रकारिता धर्म से गिरा मीडिया
उन्होंने तीखा कटाक्ष करते हुए कहा कि इन चैनलों के पत्रकार अब पत्रकारिता धर्म निभाने की तराज़ू पर शून्य से भी नीचे आ चुके हैं। इनके मालिक जब खुद अपने कर्तव्य के सच्चे नहीं हैं, तो वे दूसरों को कैसे सही राह दिखा सकते हैं?
‘गूंगी मीडिया’ को बचाने की कवायद
सपा प्रमुख ने स्पष्ट किया कि सरकार की यह कवायद ‘गूंगी मीडिया’ को कृत्रिम साँसों पर जिंदा रखने की कोशिश है। लेकिन सच्चाई यह है कि जिस जनता ने इन चैनलों को नकारा है, वह वापस कभी इनकी ओर नहीं लौटेगी।
टीआरपी का दिवालियापन: भड़काऊ शीर्षकों और झांकी जैसे सेट्स का असफल प्रयोग
उन्होंने कहा कि आज के बड़े टीवी चैनल रंग-बिरंगे बचकाने ग्राफिक्स, हास्यास्पद सेट्स, और भड़काऊ शीर्षकों के सहारे टीआरपी बटोरने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब दर्शक समझ चुके हैं कि उनके साथ क्या खेल हो रहा है।
डर से उजागर होता असली चेहरा
अखिलेश ने कहा कि इन पाबंदियों से एक फायदा जरूर हुआ है – भाजपा सरकार का डर और उसका असली चेहरा आम जनता के सामने आ गया है।
जनता को नहीं रोक सकती कोई सरकार
उन्होंने दावा किया कि जब हर हाथ में मोबाइल है और हर नागरिक रिपोर्टर बन गया है, तो सरकार कितनों पर पाबंदी लगाएगी? यह 'सिटिजन जर्नलिज्म' का युग है और इसमें जनता को चुप कराना नामुमकिन है।
क्रांतिकारी क़लम और चैतन्य कलाकारों की एकता की पुकार
अखिलेश ने अपने बयान के अंत में सभी स्वतंत्र यूट्यूब क्रिएटर्स और समाचार चैनलों से एकजुट होकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने की अपील की। उन्होंने कहा, "यह सच्ची आवाज़ों को बुलंद करने का समय है। क्रांतिकारी क़लम और चैतन्य कलाकारों की एकता ने इतिहास को नकारात्मक होने से बचाया है।"
‘लगेगी पाबंदी तो आएंगे और चैनल’: हिम्मत की बात
अंत में उन्होंने कहा, "लगेगी पाबंदी तो आएंगे कई और सच्चे चैनल भी इसकी ज़द में। यहाँ कोई अकेला चैनल थोड़ी है।" यह संदेश सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक चेतावनी और हिम्मत भरी हुंकार है कि सच्चाई को कोई सत्ता दबा नहीं सकती।
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