दिल्ली HC का अहम फैसला: ‘शारीरिक संबंध’ का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं, सबूत जरूरी
दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट के तहत एक अहम फैसले में आरोपी को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि यौन उत्पीड़न के लिए ठोस सबूत जरूरी हैं। जेंडर भेदभाव को खारिज करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है।

INDC Network : नई दिल्ली : दिल्ली HC का अहम फैसला: ‘शारीरिक संबंध’ का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं, सबूत जरूरी
दिल्ली हाईकोर्ट का बयान: यौन उत्पीड़न तय करने के लिए सबूत जरूरी
दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट के तहत एक मामले की सुनवाई के दौरान अहम फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता द्वारा ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल करना यौन उत्पीड़न का प्रमाण नहीं हो सकता। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने आरोपी को बरी करते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में सबूतों के आधार पर ही यौन उत्पीड़न तय किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने आरोपी को दी राहत
- पृष्ठभूमि : यह मामला 2017 का है, जब 14 वर्षीय लड़की को एक व्यक्ति अपने साथ फरीदाबाद ले गया। दिसंबर 2023 में इस व्यक्ति के खिलाफ POCSO, रेप और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए।
- ट्रायल कोर्ट का फैसला : ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
- हाईकोर्ट का निष्कर्ष : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब पीड़िता अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी, तो यह स्पष्ट नहीं है कि यौन उत्पीड़न का निष्कर्ष कैसे निकाला गया।
‘शारीरिक संबंध’ शब्द की व्याख्या पर जोर
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि POCSO एक्ट के तहत ‘शारीरिक संबंध’ शब्द को सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न या पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट से नहीं जोड़ा जा सकता। इसके लिए ठोस सबूत जरूरी हैं।
अधिनियम | प्रावधान | सजा |
---|---|---|
POCSO धारा 3 | पेनिट्रेटिव यौन हमला | कम से कम 10 साल जेल |
POCSO धारा 5 | गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमला | 20 साल से लेकर आजीवन कारावास |
हाईकोर्ट का अन्य फैसला: जेंडर का कोई बचाव नहीं
POCSO एक्ट के तहत महिला पर केस : 10 अगस्त 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में कहा कि POCSO एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले का आरोप महिलाओं पर भी लगाया जा सकता है।
महिला याचिकाकर्ता का तर्क : महिला ने अदालत में तर्क दिया कि POCSO एक्ट की परिभाषा में केवल पुरुषों को दोषी माना गया है।
हाईकोर्ट का जवाब : जस्टिस जयराम भंभानी ने स्पष्ट किया कि जेंडर की परवाह किए बिना सभी पर कानून समान रूप से लागू होता है।
POCSO एक्ट: एक नजर में
POCSO एक्ट 14 नवंबर 2012 को लागू हुआ। यह कानून नाबालिगों को यौन उत्पीड़न, शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है।
विशेषता | विवरण |
---|---|
लागू तिथि | 14 नवंबर 2012 |
सुरक्षा का दायरा | 18 साल से कम उम्र के सभी नाबालिग |
शामिल अपराध | यौन उत्पीड़न, शोषण, ऑनलाइन हैरेसमेंट |
अदालती प्रक्रिया | स्पेशल कोर्ट में इन-कैमरा सुनवाई |
- दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न्याय प्रणाली में साक्ष्यों की अहमियत को रेखांकित करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल अनुमान के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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