एमसीडी वार्ड चुनाव : भाजपा और आप के बीच कांटे की टक्कर, स्थायी समिति के भाग्य का फैसला
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) वार्ड चुनावों में भाजपा ने 7 जोन जीतकर स्थायी समिति में अपनी स्थिति मजबूत की, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) ने 5 जोन पर जीत हासिल की। अब स्थायी समिति की अंतिम सीट पर चुनाव होने बाकी है, जो भाजपा के लिए अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ कर सकता है। मेयर शेली ओबेरॉय के विरोध के बावजूद उपराज्यपाल वीके सक्सेना के हस्तक्षेप से चुनाव समय पर संपन्न हुए।

INDC Network : दिल्ली : एमसीडी वार्ड चुनाव: भाजपा और आप के बीच कांटे की टक्कर, स्थायी समिति के भाग्य का फैसला
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के वार्ड चुनावों में बुधवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। इन चुनावों में भाजपा ने सात जोन में जीत हासिल की, जबकि आप पांच जोनों तक सीमित रही। यह चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण थे क्योंकि इसके नतीजे स्थायी समिति के गठन और उसके अध्यक्ष के चयन पर गहरा असर डालेंगे।
एमसीडी की स्थायी समिति नगर निगम की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, और इसके पास वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियां होती हैं। भाजपा के लिए समिति के अध्यक्ष पद पर कब्जा करना बेहद महत्वपूर्ण है, जबकि आप के लिए भी यह पद उतना ही महत्वपूर्ण है। वर्तमान स्थिति में भाजपा के पास स्थायी समिति में 9 पार्षद हैं और आप के पास 8 पार्षद। अब एक और सीट के लिए चुनाव होने बाकी है, जिस पर पहले भाजपा सांसद कमलजीत सहरावत का कब्जा था। यदि भाजपा इस सीट पर फिर से जीत हासिल करती है, तो भाजपा के लिए अध्यक्ष पद सुरक्षित हो जाएगा। यदि आप इस सीट पर जीतती है, तो अध्यक्ष का फैसला लॉटरी के माध्यम से होगा।
भाजपा की बढ़त और आप की चुनौती : भाजपा ने नरेला, सिविल लाइंस, केशव पुरम, शाहदरा उत्तर, नजफगढ़, शाहदरा दक्षिण और मध्य जोन में जीत हासिल की। वहीं, आप ने करोल बाग, पश्चिम, दक्षिण, सिटी एसपी और रोहिणी जोन में जीत दर्ज की। भाजपा के लिए यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि पिछले एमसीडी चुनाव में आप को मजबूत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा था। इस बार, भाजपा ने अपने संगठनात्मक ताकत का प्रदर्शन करते हुए सात जोन में विजय प्राप्त की। आप के लिए यह चुनाव एक चुनौतीपूर्ण मुकाबला साबित हुआ। हालांकि, आप ने पांच जोनों में जीत हासिल की, लेकिन उसे स्थायी समिति में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए इस निर्णायक सीट पर जीत की जरूरत होगी।
चुनाव प्रक्रिया में देरी और अंततः समाधान : चुनाव की प्रक्रिया में पहले से ही 19 महीने की देरी हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट के 5 अगस्त के फैसले ने एमसीडी चुनाव के लिए रास्ता साफ किया, लेकिन फिर भी अंतिम समय में मेयर शेली ओबेरॉय ने पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप चुनाव के समय पर संपन्न होने पर संशय पैदा हो गया था। हालांकि, उपराज्यपाल वीके सक्सेना के हस्तक्षेप से स्थिति साफ हो गई। उन्होंने सभी एमसीडी जोन डिप्टी कमिश्नरों को पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने का आदेश दिया और निर्देश दिया कि चुनाव तय समय पर ही कराए जाएं। इसके बाद, 28 अगस्त को एमसीडी चुनाव की घोषणा की गई और 30 अगस्त तक नामांकन दाखिल किए गए।
आप और भाजपा के पार्षदों की भूमिका : भाजपा ने आप से हाल ही में शामिल हुए पार्षद पवन सहरावत और सुगंधा के माध्यम से नरेला और मध्य जोन से वार्ड समितियों के अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की। इसके अलावा, सिविल लाइंस जोन में आप और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली, जिसमें भाजपा ने तीनों पदों पर एक-एक वोट के अंतर से जीत हासिल की।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप : इन चुनावों के बीच, आप ने भाजपा पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह हरियाणा में गोरक्षा के नाम पर 19 वर्षीय हिंदू व्यक्ति की हत्या करने वाली “घृणा की राजनीति” में लिप्त है। राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि भाजपा सरकार इस हत्या के लिए जिम्मेदार है।
एमसीडी वार्ड चुनावों में भाजपा और आप के बीच कड़ी टक्कर ने दिल्ली की राजनीति को एक नई दिशा दी है। स्थायी समिति की अंतिम सीट के परिणाम पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि इससे न केवल एमसीडी के अध्यक्ष का चुनाव होगा, बल्कि दिल्ली में भाजपा और आप के राजनीतिक समीकरण भी प्रभावित होंगे। आगामी चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सी पार्टी इस निर्णायक सीट पर जीत हासिल करती है और स्थायी समिति में अपना वर्चस्व स्थापित करती है।
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