भूमि अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: क्या सरकारों को अब बदलना होगा रवैया?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किसी भी भूमि स्वामी को अनिश्चित काल तक अपनी भूमि के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी भूखंड पर कोई प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसे अनिश्चित काल तक लागू नहीं रखा जा सकता। यह फैसला महाराष्ट्र में 33 वर्षों से आरक्षित पड़ी भूमि के मामले में सुनाया गया।

INDC Network : नई दिल्ली, भारत : भूमि अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: क्या सरकारों को अब बदलना होगा रवैया?
भूमि अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी भूस्वामी को उसकी भूमि के उपयोग से अनिश्चित काल तक वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट के अनुसार, "यदि किसी भूखंड पर कोई प्रतिबंध लगाया जाता है, तो इसे अनिश्चित काल तक खुला नहीं रखा जा सकता। भूमि मालिक को वर्षों तक भूमि के उपयोग से वंचित रखना न्यायसंगत नहीं है।"
यह टिप्पणी महाराष्ट्र के एक मामले की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें सरकार ने 33 वर्षों तक एक भूखंड को आरक्षित रखा था, लेकिन उसका अधिग्रहण नहीं किया।
33 वर्षों से आरक्षित भूखंड का मामला
महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 127 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले 33 वर्षों से एक भूखंड को विकास योजना के तहत आरक्षित रखना न्यायोचित नहीं है। अदालत ने कहा कि सरकार ने न केवल भूमि मालिकों को अपने भूखंड का उपयोग करने से रोका, बल्कि अब खरीदारों को भी इस संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
10 वर्षों की समयसीमा का पालन जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 126 का हवाला देते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के लिए कानून में 10 वर्षों की समयसीमा निर्धारित की गई है। महाराष्ट्र अधिनियम 42/2015 द्वारा संशोधन से पहले भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस देने के लिए भूमि मालिक को एक अतिरिक्त वर्ष दिया गया था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह समयसीमा "पवित्र" है और सरकार या कोई अन्य प्राधिकरण इसे अनदेखा नहीं कर सकता।
भूमि स्वामी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
शीर्ष अदालत ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की, जिसमें एक खाली भूखंड के मालिकों ने 2.47 हेक्टेयर भूमि के विकास की योजना प्रस्तुत की थी। इस योजना को स्वीकृति मिल गई थी, लेकिन शेष क्षेत्र को 1993 में संशोधित विकास योजना में एक निजी स्कूल के लिए आरक्षित कर दिया गया।
हालांकि, 1993 से 2006 तक महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस भूखंड का अधिग्रहण करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी भूमि का विधिवत अधिग्रहण नहीं किया जाता, तब तक उसे भूस्वामी के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता।
भविष्य के लिए क्या है इस फैसले का प्रभाव?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन लाखों भूस्वामियों के लिए राहत की खबर है, जिनकी जमीनें वर्षों से विकास परियोजनाओं के नाम पर अधिग्रहित नहीं की गईं और वे उनका उपयोग भी नहीं कर पा रहे थे। यह निर्णय सरकारों और नगर नियोजन प्राधिकरणों को भी स्पष्ट संदेश देता है कि भूमि अधिग्रहण और आरक्षण की प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाना चाहिए, अन्यथा वे कानूनी विवादों में फंस सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भूस्वामी को अनिश्चित काल तक उसकी भूमि के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता। भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में देरी और अनिश्चितता को लेकर यह ऐतिहासिक निर्णय कई भूस्वामियों के लिए राहत की उम्मीद लेकर आया है।
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