वराहगिरी वेंकट गिरि (1969-1974): भारत के चौथे राष्ट्रपति और भारतीय श्रमिक आंदोलनों के नेता

वराहगिरी वेंकट गिरि, भारत के चौथे राष्ट्रपति (1969-1974), एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी और श्रमिक आंदोलनों के प्रमुख नेता थे। उन्होंने भारतीय राजनीति और सामाजिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए कड़े निर्णय लिए गए। उनका जीवन देशभक्ति, श्रमिक हितों की रक्षा, और लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित था। उनके योगदान ने भारत के राष्ट्रपति पद की गरिमा को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। आइए उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करें।

Oct 12, 2024 - 19:43
Oct 12, 2024 - 22:34
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वराहगिरी वेंकट गिरि (1969-1974): भारत के चौथे राष्ट्रपति और भारतीय श्रमिक आंदोलनों के नेता

INDC Network : जीवनी :  वराहगिरी वेंकट गिरि (1969-1974): भारत के चौथे राष्ट्रपति और भारतीय श्रमिक आंदोलनों के नेता

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : वराहगिरी वेंकट गिरि का जन्म 10 अगस्त 1894 को उड़ीसा के बेरहामपुर में हुआ था। उनका परिवार दक्षिण भारतीय था और उनकी परवरिश परंपरागत और धार्मिक वातावरण में हुई। उनके पिता वराहगिरी वेंकट जोगैया पंतुलु एक प्रतिष्ठित वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थक थे। वेंकट गिरि पर अपने पिता के देशभक्ति के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने उनके जीवन की दिशा तय की।

वेंकट गिरि की प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्मस्थान बेरहामपुर में हुई। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए मद्रास (अब चेन्नई) के प्रसिद्ध ख्राइस्ट कॉलेज में दाखिला लिया। बाद में, उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए आयरलैंड के डबलिन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहीं से उनके जीवन में सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण विकसित हुए।

आयरलैंड में रहते हुए वे श्रमिक आंदोलनों और स्वतंत्रता आंदोलनों से प्रेरित हुए। इस दौरान वे आयरिश स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं से मिले और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और भी मजबूत हुई। उनकी पढ़ाई के दौरान ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद और श्रमिक वर्ग के शोषण के खिलाफ उनके विचार स्पष्ट हो गए। 


स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी : डबलिन से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, वेंकट गिरि 1916 में भारत लौटे और जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। उनका मुख्य ध्यान श्रमिकों और मजदूरों के अधिकारों पर केंद्रित था, जिसके कारण उन्होंने कई ट्रेड यूनियन संगठनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वेंकट गिरि भारतीय श्रमिक आंदोलन के प्रमुख नेता बनकर उभरे। उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और ट्रेड यूनियन को एक मजबूत मंच प्रदान किया। वे मानते थे कि श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना देश की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा जितना ही महत्वपूर्ण है।


उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी सक्रिय भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920-1922) और बाद में भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लिया। उनकी कार्यशैली ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक प्रमुख श्रमिक नेता के रूप में स्थापित किया। वे श्रमिकों के हक के लिए निडर होकर आवाज उठाते थे और इसी कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

श्रमिक आंदोलन में योगदान : वेंकट गिरि का सबसे बड़ा योगदान भारतीय श्रमिक आंदोलन में रहा। उन्होंने श्रमिकों की आवाज को मजबूत करने के लिए कई ट्रेड यूनियनों की स्थापना की और उनके हक के लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि श्रमिक वर्ग देश की रीढ़ है और उन्हें समाज और सरकार से उचित अधिकार मिलना चाहिए।


वे 1926 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के अध्यक्ष बने और श्रमिक वर्ग के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण नीतियों को लागू किया। उन्होंने मजदूरों के वेतन, काम के घंटे, और कार्य स्थितियों में सुधार के लिए संघर्ष किया। उनके प्रयासों से श्रमिक आंदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई और उन्हें 'श्रमिकों का नेता' कहा जाने लगा।

इसके अलावा, वेंकट गिरि ने मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते हुए मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों का समर्थन किया। उनका मानना था कि मजदूरों को न केवल अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए, बल्कि उन्हें इन अधिकारों के लिए लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। उनका श्रमिक आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया था।


अंतरिम राष्ट्रपति और राष्ट्रपति चुनाव (1969) : 1967 में डॉ. जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद, वेंकट गिरि को भारत का अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। इसके बाद 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए, जिसमें वेंकट गिरि ने बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार भाग लिया। उस समय कांग्रेस पार्टी दो गुटों में बँट चुकी थी, एक पक्ष इंदिरा गांधी के नेतृत्व में था और दूसरा पक्ष कांग्रेस संगठन के रूप में।

इंदिरा गांधी ने वेंकट गिरि का समर्थन किया, जबकि कांग्रेस संगठन ने नीलम संजीव रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया। यह चुनाव अत्यधिक महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह भारत की राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। वेंकट गिरि ने इस चुनाव में जीत हासिल की और वे भारत के चौथे राष्ट्रपति बने।

उनकी जीत भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाली थी, क्योंकि उन्होंने अपने चुनाव में स्वतंत्रता और निष्पक्षता का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी जीत ने यह साबित किया कि भारतीय राजनीति में लोकतंत्र और जनमत का कितना महत्व है।


राष्ट्रपति पद (1969-1974) : वेंकट गिरि ने 24 अगस्त 1969 को भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति और समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उस समय देश में राजनीतिक अस्थिरता थी और कई चुनौतियाँ थीं, जिनमें सबसे प्रमुख थी इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी के भीतर मतभेद।

राष्ट्रपति के रूप में वेंकट गिरि ने भारतीय लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रपति का पद राजनीति से दूर रहते हुए संविधान के अनुरूप कार्य करे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई संवैधानिक संकटों का सामना किया, जिनमें से सबसे प्रमुख था 1971 का भारत-पाक युद्ध।

इसके अलावा, वेंकट गिरि का एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान यह था कि उन्होंने श्रमिक हितों और मजदूरों के अधिकारों को राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी प्राथमिकता दी। वे श्रमिकों के समर्थन में सदैव खड़े रहे और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए काम करते रहे।


भारत रत्न से सम्मानित : राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद  1975 में वेंकट गिरि को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें उनके राष्ट्रीय सेवा, श्रमिक आंदोलनों में योगदान, और भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए दिया गया।

उनकी यह उपलब्धि भारतीय राजनीति में उनके योगदान का प्रतीक है। वे एक ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने न केवल संविधान की रक्षा की, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों के लिए भी सदैव संघर्ष किया।


डॉ. वेंकट गिरि की लिखित कृतियाँ : वेंकट गिरि न केवल एक महान राजनेता और श्रमिक नेता थे, बल्कि एक विद्वान लेखक भी थे। उनके लेखन में भारतीय श्रमिक आंदोलन, समाजवाद, और संविधान संबंधी मुद्दों पर गहरा विचार मिलता है। उन्होंने श्रमिक अधिकारों और भारतीय राजनीति पर कई लेख और पुस्तकें लिखीं, जिनमें उनकी विचारधारा और संघर्ष की झलक मिलती है।

उनकी प्रमुख रचनाएँ श्रमिक आंदोलनों और भारतीय राजनीति की जटिलताओं को समझने में सहायक हैं। उनके लेखन में श्रमिकों की स्थिति को सुधारने के लिए व्यावहारिक सुझाव और नीतियाँ दी गई हैं।


व्यक्तिगत जीवन और नैतिकता : वेंकट गिरि का जीवन सादगी और नैतिकता का प्रतीक था। वे हमेशा सादा जीवन जीने में विश्वास करते थे और उनके जीवन का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों की सेवा करना था। वे न केवल एक महान नेता थे, बल्कि एक आदर्श परिवार व्यक्ति भी थे।

उनकी पत्नी, सरस्वती बाई, भी समाज सेवा में सक्रिय थीं और वेंकट गिरि के साथ मिलकर सामाजिक सुधारों में योगदान देती थीं। वेंकट गिरि का जीवन उनकी नैतिकता, सेवा भावना, और समाज के प्रति समर्पण का एक उत्कृष्ट उदाहरण था।


निष्कर्ष : वराहगिरी वेंकट गिरि का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है। वे एक महान श्रमिक नेता, स्वतंत्रता सेनानी, और भारतीय संविधान के रक्षक थे। राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और संविधान की महत्ता को स्थापित किया। उनका जीवन और उनके आदर्श आज भी समाज और राजनीति के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

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Sangam Shakya Hello! My Name is Sangam Shakya from Farrukhabad (Uttar Pradesh), India. I am 18 years old. I have been working for INDC Network news company for the last one year. My position in INDC Network company is Managing Editor