18 साल की उम्र में दुनिया का सबसे युवा चैंपियन बना गुकेश, संघर्ष की मिसाल
18 वर्षीय डी. गुकेश ने चीन के डिंग लिरेन को हराकर विश्व शतरंज चैंपियन का ताज पहना। उनके इस सफर में उनके माता-पिता के त्याग और समर्थन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके पिता ने अपना डॉक्टर का करियर छोड़ा, और माँ ने परिवार का खर्च उठाने की जिम्मेदारी संभाली। यह कहानी है सपनों, संघर्ष और सफलता की।

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गुकेश: संघर्ष और सफलता की कहानी
प्रारंभिक दिन: 7 साल की उम्र में सपना देखा
डी. गुकेश ने मात्र 7 साल की उम्र में शतरंज में करियर बनाने का सपना देखा था। उनके माता-पिता, राजनikanth और पद्मा कुमारी ने न केवल उनके इस सपने को समर्थन दिया, बल्कि इसके लिए बड़े त्याग भी किए।
विश्व चैंपियन बनकर रचा इतिहास
गुकेश ने चीन के डिंग लिरेन को 14 गेमों की मैराथन में हराकर इतिहास रच दिया। उन्होंने 7.5 अंक हासिल किए जबकि डिंग 6.5 पर रहे। यह उपलब्धि हासिल कर वे विश्वनाथन आनंद के बाद दूसरे भारतीय बने, जिन्होंने यह खिताब जीता। यह मुकाबला अंतिम गेम तक रोमांचक बना रहा।
माता-पिता का त्याग
परिवार का बलिदान | विवरण |
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पिता राजनikanth | ईएनटी सर्जन, करियर छोड़ा |
माँ पद्मा कुमारी | माइक्रोबायोलॉजिस्ट, परिवार की जिम्मेदारी संभाली |
2017-18 | पिता ने गुकेश के साथ यात्रा की |
गुकेश के पिता राजनikanth को 2017-18 में अपनी प्रैक्टिस छोड़नी पड़ी। वह अपने बेटे के साथ दुनिया भर में जीएम नॉर्म हासिल करने के लिए सीमित बजट में यात्रा करते रहे। वहीं, उनकी माँ ने घर की आर्थिक जिम्मेदारी पूरी तरह संभाल ली।
सपनों का साकार होना
गुकेश ने जीत के बाद कहा, “मैंने इस पल का सपना बचपन से देखा था, लेकिन यह मेरे माता-पिता के लिए मुझसे भी बड़ा सपना था।” जीत के बाद उनके और उनके पिता के बीच भावुक आलिंगन ने इस संघर्ष भरे सफर की सारी कहानी बयां कर दी।
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