इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: जूनियर शिक्षकों को मिली राहत, राज्य की तबादला नीति रद्द
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के हजारों जूनियर शिक्षकों के लिए बड़ी राहत देते हुए राज्य सरकार की विवादास्पद तबादला नीति को रद्द कर दिया। इस नीति के तहत जूनियर शिक्षकों का तबादला शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के नाम पर किया जाता था, जो कोर्ट के अनुसार, सेवा अवधि पर आधारित और भेदभावपूर्ण थी। कोर्ट ने इस नीति को संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।

INDC Network : उत्तर प्रदेश : जूनियर शिक्षकों के लिए राहत: हाई कोर्ट ने रद्द की तबादला नीति
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के हजारों जूनियर शिक्षकों को एक बड़ी राहत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा लागू तबादला नीति को रद्द कर दिया है। यह नीति जून 2024 में शिक्षक-छात्र अनुपात को संतुलित रखने के उद्देश्य से लाई गई थी, जिसमें सेवा अवधि के आधार पर शिक्षकों का तबादला किया जाना था। कोर्ट ने इस नीति को मनमाना और भेदभावपूर्ण करार देते हुए इसे सेवा नियमों और संविधान के अनुच्छेद-14 के विरुद्ध पाया।

सरकारी आदेश की समीक्षा और फैसला
जस्टिस मनीष माथुर की पीठ ने पुष्कर सिंह चंदेल सहित 21 अन्य शिक्षकों द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया। इन याचिकाओं में 26 जून 2024 को जारी सरकारी आदेश और 28 जून 2024 के परिपत्र के विभिन्न खंडों को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकीलों, वरिष्ठ अधिवक्ता एच.जी.एस. परिहार, यू.एन. मिश्रा और सुदीप सेठ ने तर्क दिया कि इस नीति के अनुसार केवल नए नियुक्त शिक्षकों का तबादला किया जा रहा है, जबकि वरिष्ठ शिक्षक अपनी स्थायी जगह पर बने रहते हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें: नीति में असमानता का आरोप
याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि तबादला नीति का पालन करते हुए केवल उन्हीं शिक्षकों का स्थानांतरण किया जाता है, जो हाल ही में विद्यालय में नियुक्त हुए हैं। ऐसे नए नियुक्त शिक्षक जब किसी दूसरे विद्यालय में भेजे जाते हैं, तो उनकी सेवा अवधि सबसे कम होने के कारण, उन्हें बार-बार तबादले का सामना करना पड़ता है। वकीलों ने दलील दी कि यह नीति शिक्षकों के सेवा नियमों का उल्लंघन करती है और उनके मौलिक अधिकारों के साथ असमान व्यवहार करती है।
राज्य सरकार की दलील और कोर्ट का निर्णय
राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए तबादला नीति आवश्यक है और याचिकाकर्ताओं को इसे चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि सरकारी आदेश में ऐसा कोई स्पष्ट आधार नहीं है जो सेवा अवधि पर आधारित तबादला नीति को उचित ठहराए। कोर्ट ने पाया कि नीति के अनुसार जूनियर शिक्षकों को बार-बार तबादलों का सामना करना पड़ता है, जबकि वरिष्ठ शिक्षक अपनी जगह बने रहते हैं।
संविधान के अनुच्छेद-14 के उल्लंघन की बात
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद-14, जो समानता के अधिकार को सुनिश्चित करता है, के अनुरूप नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस नीति को जारी रखा जाता है, तो जूनियर शिक्षकों को हमेशा तबादलों के माध्यम से समायोजित किया जाएगा, जबकि वरिष्ठ शिक्षक स्थिर बने रहेंगे।
- इस फैसले के बाद राज्य सरकार को तबादला नीति में संशोधन करना पड़ सकता है ताकि सभी शिक्षकों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित किया जा सके। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय शिक्षकों के लिए बड़ी राहत है और यह दिखाता है कि सेवा नियमों और संविधान का पालन करते हुए नीति बनाना अनिवार्य है।
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