विश्व में मचा शैक्षिक तहलका: विभाज्यता के महासूत्रों के खोजक रत्नेश शाक्य की नई गणना से शिक्षा जगत में खलबली
गणितज्ञ रत्नेश शाक्य ने सबसे छोटी संख्या को लिखने की गणना में बदलाव का दावा किया है, जिससे गणित की प्रचलित पुस्तकों में परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है। वह इस अवधारणा को सार्वजनिक रूप से गलत सिद्ध करने के लिए प्रदर्शन करने को तैयार हैं, और चुनौती के रूप में प्रतिभागियों को 11 लाख रुपये का चेक जमा करने की शर्त रखी है। यदि वह अपने दावे को सिद्ध कर देते हैं, तो जमा राशि वापस नहीं की जाएगी।

INDC Network : विश्व में मचा शैक्षिक तहलका: विभाज्यता के महासूत्रों के खोजक रत्नेश शाक्य की नई गणना से शिक्षा जगत में खलबली
हाल ही में गणितज्ञ रत्नेश शाक्य द्वारा सोशल मीडिया पर साझा की गई पोस्टों ने शिक्षा जगत में तहलका मचा दिया है। इन पोस्टों में रत्नेश शाक्य ने दावा किया है कि उन्होंने सबसे छोटी संख्या को लिखने के संदर्भ में ऐसी गणनाएं की हैं, जो विश्व की गणित की प्रारंभिक पुस्तकों में बदलाव की मांग कर सकती हैं। इस दावे के बाद गणित के कई विद्वान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप पर उनसे लगातार सवाल कर रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?
विश्वभर में प्रचलित गणित की पुस्तकों में यह सिखाया जाता है कि यदि किसी संख्या में शून्य भी शामिल हो, तो उस शून्य को सबसे बायीं ओर नहीं लिखा जाता है। इसके बजाय, सबसे पहले सबसे छोटा अंक लिखा जाता है, फिर शून्य और शेष अंकों को बढ़ते क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। उदाहरण के लिए, 0, 1, और 2 अंकों से बनने वाली सबसे छोटी तीन अंकों की संख्या 102 मानी जाती है, और 0, 1, 2, 3 अंकों से बनने वाली सबसे छोटी चार अंकों की संख्या 1023 होगी।
हालांकि, रत्नेश शाक्य का दावा इससे अलग है। उनके अनुसार:
- 0, 1, और 2 अंकों से बनने वाली सबसे छोटी संख्या 012 होनी चाहिए।
- इसी प्रकार, 0, 1, 2, और 3 अंकों से बनने वाली सबसे छोटी चार अंकों की संख्या 0123 होनी चाहिए।
इस गणितीय दृष्टिकोण के अनुसार, शून्य को सबसे बायीं ओर रखना भी सही है, जो कि वर्तमान पुस्तकों में वर्णित अवधारणा के विपरीत है। रत्नेश शाक्य के अनुसार, इस नई गणना से गणित की प्रारंभिक पुस्तकों में बदलाव की आवश्यकता होगी।
गणित की पारंपरिक अवधारणा के पक्ष में तर्क :
वर्तमान गणितीय अवधारणा, जो सदियों से चली आ रही है, इसके सही होने के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं:
- इतिहास: यह अवधारणा सदियों से विश्वभर में मान्य है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह सही है।
- स्वीकृति: विश्वभर के छात्रों, शिक्षकों और गणितज्ञों ने इस अवधारणा को पढ़ा और सही माना है।
- सर्वमान्यता: लगभग सभी गणित की किताबों में इस अवधारणा का समान वर्णन है, जो इसे सही ठहराता है।
- तर्कशीलता: पारंपरिक किताबों में इसके पक्ष में मजबूत तर्क दिए गए हैं, जो इसकी प्रामाणिकता को बनाए रखते हैं।
रत्नेश शाक्य का दावा और चुनौती :
रत्नेश शाक्य इस परंपरागत अवधारणा को गलत मानते हैं और इसे गलत सिद्ध करने के लिए सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं। वे राजकीय जिला पुस्तकालय मैनपुरी या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर इस प्रदर्शन के लिए इच्छुक हैं, जहाँ गणितज्ञों और गणना के शौकीनों के सामने अपनी गणना प्रस्तुत करेंगे।
रत्नेश शाक्य की चुनौती के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस पारंपरिक अवधारणा पर अटूट विश्वास रखता है और इस प्रदर्शन में भाग लेना चाहता है, उसे 11 लाख रुपये का चेक पहले से जमा करना होगा। यदि रत्नेश शाक्य इस अवधारणा को गलत साबित कर देते हैं, तो यह राशि वापस नहीं की जाएगी। लेकिन यदि वह इसे सिद्ध नहीं कर पाते, तो प्रतिभागियों के चेक बिना किसी कटौती के वापस कर दिए जाएंगे।
चुनौती की शर्तें :
- इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए 11 लाख रुपये का चेक जमा करना अनिवार्य होगा।
- यदि रत्नेश शाक्य पारंपरिक अवधारणा को गलत साबित करते हैं, तो जमा की गई धनराशि प्रतिभागियों को वापस नहीं मिलेगी।
- प्रदर्शन के लिए आवश्यक प्रतिभागियों की संख्या 38 है। जब यह संख्या पूरी हो जाएगी, तो प्रदर्शन की तिथि सभी प्रतिभागियों को सूचित की जाएगी।
- अगर रत्नेश शाक्य जीतते हैं, तो पुरस्कार राशि का 10% हिस्सा गरीबों और 10% जिला पुस्तकालय मैनपुरी को दान करेंगे।
जो भी व्यक्ति इस चुनौती में भाग लेना चाहता है, वह राजकीय जिला पुस्तकालय मैनपुरी के जिलाध्यक्ष श्री संजय यादव से संपर्क कर सकता है। जैसे ही पर्याप्त संख्या में प्रतिभागी तैयार होंगे, प्रदर्शन की तिथि घोषित की जाएगी।इस चुनौती और प्रदर्शन के किसी भी नियम में बदलाव होने पर सभी प्रतिभागियों को पूर्व में सूचित कर दिया जाएगा।
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