न्यायमूर्ति संजीव खन्ना बने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश, जानें उनके ऐतिहासिक फैसले और करियर सफर
जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे हैं। वे 11 नवंबर 2024 को शपथ लेंगे। उनका कार्यकाल करीब छह महीने का होगा, जो 13 मई 2025 को खत्म होगा। उन्होंने अपने करियर में कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं, जिनमें इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम और अनुच्छेद 370 पर अहम फैसले शामिल हैं। उनका न्यायिक करियर 1983 में दिल्ली बार काउंसिल से शुरू हुआ था और वे अपने पारदर्शी रवैये के लिए जाने जाते हैं।

INDC Network : नई दिल्ली : न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे हैं। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होंगे, जिसके बाद न्यायमूर्ति खन्ना 11 नवंबर को सीजेआई का पद संभालेंगे। उनका कार्यकाल छह महीने से थोड़ा अधिक होगा और वे 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस खबर की घोषणा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा संविधान में निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के परामर्श के बाद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को नया मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना: करियर की शुरुआत और न्यायिक सफर
न्यायमूर्ति खन्ना ने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में अपने कानूनी करियर की शुरुआत की। उन्होंने तीस हजारी कोर्ट्स में वकालत शुरू की और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय और विभिन्न न्यायाधिकरणों में भी प्रैक्टिस की। उन्होंने आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में भी काम किया और 2004 में दिल्ली राज्य के स्थायी वकील (सिविल) बने।
2005 में, उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और 2006 में वे स्थायी न्यायाधीश बने। 2019 में, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने पूरे करियर में संवैधानिक कानून, कराधान, मध्यस्थता और कई अन्य मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
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महत्वपूर्ण फैसले और कानूनी दृष्टिकोण
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। उनमें से एक 2024 में आया, जब उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाले फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना था कि चुनावी बॉन्ड योजना में पारदर्शिता की कमी है और यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, क्योंकि इसमें दानकर्ताओं की पहचान बैंक अधिकारियों को ज्ञात होती है। इस फैसले ने चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता के महत्व को सामने रखा।
2023 में, न्यायमूर्ति खन्ना पांच न्यायाधीशों की उस पीठ का हिस्सा थे जिसने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले को बरकरार रखा। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण संघीय ढांचे पर असर नहीं डालता और यह असममित संघवाद का प्रतिनिधित्व करता था।
एक और महत्वपूर्ण फैसला 2019 में आया जब उन्होंने घोषणा की कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के अंतर्गत आता है। यह फैसला न्यायपालिका में पारदर्शिता और गोपनीयता के संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण था।
सामाजिक और कानूनी योगदान
न्यायमूर्ति खन्ना वर्तमान में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की शासी परिषद के सदस्य हैं। उन्होंने दिल्ली न्यायिक अकादमी और दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र जैसे कानूनी निकायों का भी नेतृत्व किया है। उनके इस योगदान ने उन्हें भारतीय न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में स्थापित किया है।
उनकी न्यायिक शैली में पारदर्शिता और न्यायिक संतुलन का विशेष ध्यान दिया जाता है। उनके फैसले समाज की भलाई और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं।
आने वाला कार्यकाल और चुनौतियाँ
11 नवंबर 2024 को शपथ ग्रहण करने के बाद, न्यायमूर्ति खन्ना के सामने कई महत्वपूर्ण कानूनी चुनौतियाँ होंगी, जिन्हें हल करना होगा। उनका कार्यकाल भले ही छोटा हो, लेकिन उनकी न्यायिक शैली और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता उन्हें एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मुख्य न्यायाधीश बनाएगी। उनके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को लेकर काफी उम्मीदें हैं, खासकर संवैधानिक और सामाजिक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को देखते हुए।
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