धार्मिक स्थलों का स्वरूप बनाए रखने के कानून पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, अप्रैल में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के Places of Worship (Special Provisions) Act पर नई याचिकाओं की बाढ़ पर नाराजगी जताई और कहा कि मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी। कोर्ट ने साफ कर दिया कि नई अर्जियों पर विचार केवल तभी होगा जब वे कोई नया कानूनी मुद्दा उठाती हों। 12 दिसंबर 2024 को अदालत ने वाराणसी के ज्ञानवापी, मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद और संभल की शाही जामा मस्जिद समेत कई मामलों की सुनवाई को रोक दिया था। अब इस कानून की वैधता पर अंतिम सुनवाई अप्रैल 2025 के पहले सप्ताह में होगी।

INDC Network : नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के Places of Worship (Special Provisions) Act पर नई याचिकाओं की बाढ़ पर नाराजगी जताई और कहा कि मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी। कोर्ट ने साफ कर दिया कि नई अर्जियों पर विचार केवल तभी होगा जब वे कोई नया कानूनी मुद्दा उठाती हों। 12 दिसंबर 2024 को अदालत ने वाराणसी के ज्ञानवापी, मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद और संभल की शाही जामा मस्जिद समेत कई मामलों की सुनवाई को रोक दिया था। अब इस कानून की वैधता पर अंतिम सुनवाई अप्रैल 2025 के पहले सप्ताह में होगी।
Places of Worship Act 1991: विवाद का केंद्र बिंदु
यह कानून किसी भी धार्मिक स्थल के 15 अगस्त 1947 के धार्मिक स्वरूप को बनाए रखने का प्रावधान करता है। इसका उद्देश्य यह था कि ऐतिहासिक धार्मिक विवाद दोबारा न उठें और सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे। हालांकि, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इससे बाहर रखा गया था।
मामले से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
मामला | विवरण |
---|---|
कानून | Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991 |
प्रमुख प्रावधान | 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्वरूप था, उसे नहीं बदला जा सकता |
छूट | राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद |
सुनवाई की स्थिति | सुप्रीम कोर्ट ने नई अर्जियों पर नाराजगी जताई, सुनवाई अप्रैल 2025 के पहले सप्ताह में |
प्रमुख याचिकाकर्ता | अश्विनी उपाध्याय, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी सांसद इक़रा चौधरी |
विवादित धार्मिक स्थल | ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी), शाही ईदगाह मस्जिद (मथुरा), शाही जामा मस्जिद (संभल), कमल मौला मस्जिद (मध्यप्रदेश) आदि |
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सोमवार को सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि बार-बार नई अर्जियां दायर करना मुश्किलें बढ़ा सकता है।
- कोर्ट ने कहा कि कई याचिकाएं ऐसी हैं जिन पर अभी तक कोई नोटिस नहीं जारी हुआ, इसलिए वे स्वतः निरस्त की जाती हैं।
- नई अर्जियों पर केवल तभी विचार होगा जब वे कोई नया कानूनी पहलू प्रस्तुत करें।
- मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि "नए मामले दायर करने की प्रवृत्ति से निपटना असंभव हो जाएगा।"
12 दिसंबर 2024 के आदेश का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि 18 से अधिक मामलों में कोई कार्रवाई नहीं होगी। ये मामले मुख्य रूप से हिंदू पक्षकारों द्वारा दायर किए गए थे, जिनमें मस्जिदों की मूल धार्मिक स्थिति का सर्वेक्षण करने की मांग की गई थी।
- इसके बाद AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी के सांसद इक़रा चौधरी ने भी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की थी।
- चौधरी ने अदालत से अपील की कि मस्जिदों और दरगाहों के खिलाफ बढ़ती कानूनी कार्यवाहियों को रोका जाए क्योंकि ये सांप्रदायिक सौहार्द को खतरे में डाल रही हैं।
कानूनी विवाद: पक्ष और विपक्ष
मुद्दा | समर्थक पक्ष | विरोधी पक्ष |
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कानून का औचित्य | मुस्लिम पक्षकारों और जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि यह कानून सांप्रदायिक शांति के लिए जरूरी है | हिंदू पक्ष का कहना है कि यह कानून कानूनी उपचार के अधिकार को छीनता है |
धारा 3 | धार्मिक स्थलों के स्वरूप में बदलाव को रोकता है | याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह हिंदुओं के अधिकारों पर अंकुश लगाता है |
धारा 4 | अदालतों की भूमिका को सीमित करता है | यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है |
अब सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 के पहले सप्ताह में तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई तय कर दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अदालत इस कानून की वैधता को बरकरार रखेगी या इसमें कोई संशोधन की संभावना होगी।
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