संकिसा बुद्ध स्तूप पर हवन से बौद्ध समुदाय में रोष: बिसारी देवी मंदिर विवाद एक बार फिर से गहराया
संकिसा स्थित बुद्ध स्तूप पर हुए हवन के कारण बौद्ध समुदाय में आक्रोश उत्पन्न हो गया है। सनातन धर्मियों द्वारा भगवान बुद्ध के पवित्र स्तूप पर हवन करने से बौद्ध अनुयायियों ने इसका विरोध किया। उन्होंने इसे पुरातत्व विभाग के नियमों का उल्लंघन और न्यायालय के आदेश की अवहेलना करार दिया। वहीं, बिसारी देवी मंदिर और बुद्ध स्तूप के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को निपटाने के लिए अदालत ने 6 माह का समय निर्धारित किया है। इस मामले में 1994 से न्यायालय में मुकदमा लंबित है, जिसका शीघ्र निपटारा होने की उम्मीद है।

INDC Network : उत्तर प्रदेश: फर्रुखाबाद: हाल ही में फर्रुखाबाद जिले के संकिसा स्थित भगवान बुद्ध के स्तूप पर सनातन धर्मियों द्वारा किए गए हवन और पूजन से विवाद खड़ा हो गया है. बौद्ध समुदाय ने इस घटना को न सिर्फ अपमानजनक माना है बल्कि इसे पुरातत्व विभाग और कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन भी माना है. यह कार्यक्रम तब और अधिक विवादास्पद हो गया जब भाजपा नेता अतुल दीक्षित और उनके समर्थकों ने भगवान बुद्ध के स्तूप के पास हवन किया और बिसारी देवी की प्रशंसा में नारे लगाए।
घटना का विवरण :
बताया जा रहा है कि संकिसा स्थित तथाकथित बिसारी देवी मंदिर के सामने भगवान बुद्ध के पवित्र स्तूप पर हवन किया गया, जो बौद्ध अनुयायियों के लिए बेहद आपत्तिजनक साबित हुआ. संकिसा स्थित धम्मलोको बुद्ध विहार सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष कर्मवीर शाक्य ने इस पूरे प्रकरण पर रोष व्यक्त करते हुए इसे पुरातत्व विभाग के नियमों का उल्लंघन बताया है. उनका कहना है कि सनातन धर्मियों द्वारा हवन-पूजन करना कोर्ट के आदेशों की अवमानना है, जो स्तूप पर किसी भी धार्मिक गतिविधि पर रोक लगाता है.
कर्मवीर शाक्य ने आगे कहा कि स्तूप पर कब्जा करने के उद्देश्य से सनातन धर्मियों ने वर्षों पहले खंडित मूर्तियां रख दी थीं, जिसे बिसारी देवी के नाम से प्रचारित किया जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि बिसारी देवी सनातन धर्म की देवी नहीं हैं और इस देवी के नाम का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में भी नहीं है।
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न्यायिक विवाद :
संकिसा स्थित बौद्ध स्तूप और बिसारी देवी मंदिर पर विवाद का इतिहास काफी पुराना है। इस मुद्दे पर फर्रुखाबाद के सिविल जज सीनियर डिवीजन हवाली कोर्ट में 1994 से मुकदमा लंबित है। यह विवाद तब बढ़ गया जब बिसारी देवी को संकिसा के मंदिर में स्थापित किया गया और बौद्ध समुदाय ने इस पर आपत्ति जताई। बौद्ध समुदाय का मानना है कि यह स्थान भगवान बुद्ध का है और यहां किसी अन्य देवी या देवता की पूजा नहीं की जानी चाहिए।
इस मामले में संकिसा मुक्ति संघर्ष समिति के संयोजक कर्मवीर शाक्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने मामले का जल्द निपटारा करने की मांग की थी. कोर्ट ने इस विवाद को 6 महीने के भीतर निपटाने का आदेश दिया है.
कोर्ट के इस फैसले के बाद उम्मीद है कि बौद्ध स्तूप और बिसारी देवी मंदिर के बीच लंबे समय से चला आ रहा यह विवाद जल्द ही खत्म हो सकता है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, सिविल जज (जेडी), हवाली, फर्रुखाबाद को 6 महीने के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया गया है. यदि किसी पक्ष को सुनवाई में अनावश्यक स्थगन दिया जाता है तो अदालत जुर्माने की सिफारिश कर सकती है।
मामले की पृष्ठभूमि :
1994 में दायर इस मामले में बिसारी देवी मंदिर के समर्थकों का कहना है कि यह मंदिर बहुत पुराना है और इसका बौद्ध धर्म से कोई संबंध नहीं है. उनका यह भी दावा है कि मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति की पूजा कई वर्षों से सनातन धर्मियों द्वारा की जा रही है। वहीं, बौद्ध पक्षों का कहना है कि यह स्थान भगवान बुद्ध का है और सनातन धर्मियों द्वारा यहां देवी की स्थापना कर उनकी पूजा करना अनुचित है.
बौद्ध अनुयायियों के अनुसार यह स्थल पुरातत्व विभाग की संपत्ति है और यहां किसी भी प्रकार का अतिक्रमण या धार्मिक हस्तक्षेप अवैध है। उनका कहना है कि सनातन धर्मियों ने टूटी हुई मूर्तियों को बिसारी देवी के रूप में यहां स्थापित किया है ताकि वे इस स्थल पर अपना कब्जा जमा सकें।
अदालती कार्यवाही :
कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को सुनवाई का मौका देकर 6 महीने के भीतर फैसला देने का आदेश दिया है. मामले की सुनवाई की अगली तारीख 15 अक्टूबर तय की गई है. प्रतिवादी पक्ष का कहना है कि इस मामले का जल्द ही निपटारा होने की उम्मीद है, क्योंकि हर हफ्ते सुनवाई की तारीखें तय की जा रही हैं. इस बीच, बौद्ध समुदाय के नेता कर्मवीर शाक्य ने जिला प्रशासन से भविष्य में बुद्ध स्तूप पर इस तरह के हवन और पूजन को रोकने का अनुरोध किया है, ताकि धार्मिक शांति और सद्भाव कायम रहे।
संकिसा में बुद्ध स्तूप पर हवन को लेकर उपजे विवाद से साफ है कि बिसारी देवी मंदिर और बौद्ध स्तूप का विवाद अब न्यायिक फैसले की ओर बढ़ रहा है. दोनों समुदायों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए अदालत के आदेश का पालन करना और इस विवाद का समाधान निकालना समय की मांग है।
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