परिवार में खुशी, फिर गहरा मातम
कानपुर के हितकारीनगर निवासी 14 वर्षीय शौर्य वर्मा ने मंगलवार को सीबीएसई की दसवीं परीक्षा फर्स्ट डिविजन से पास की थी। लेकिन बुधवार सुबह घर के अंदर उसने रस्सी से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
शौर्य वेलफेयर मिशन स्कूल का छात्र था और अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता ओम प्रकाश शर्मा एक स्कूल में शिक्षक हैं। परिवार में मां रमा देवी, दो बड़े भाई लव और अंशुमान हैं।
तीन दिन पहले बोला था – “पापा, ये दुनिया हमारे लिए नहीं है”
पिता ओमप्रकाश बताते हैं कि तीन दिन पहले शौर्य ने कहा था, “पापा, ये दुनिया हमारे लिए नहीं है।” उन्होंने उस वक्त इसे एक सामान्य भावुकता समझकर नजरअंदाज कर दिया।
वह कुछ दिनों से चुपचाप और गहरे विचारों में डूबा रहता था। आध्यात्मिक किताबें, रामायण, गीता और ऐतिहासिक ग्रंथों में उसकी रुचि थी।
शौर्य आत्महत्या केस से जुड़े मुख्य तथ्य
तथ्य |
विवरण |
छात्र का नाम |
शौर्य वर्मा |
उम्र |
14 वर्ष |
स्कूल |
वेलफेयर मिशन स्कूल, कानपुर |
परीक्षा परिणाम |
CBSE 10वीं, प्रथम श्रेणी |
आत्महत्या की तारीख |
बुधवार, परीक्षा के अगले दिन |
आत्महत्या का तरीका |
पंखे के कुंडे से नायलोन की रस्सी द्वारा फांसी |
आत्महत्या का कारण |
स्पष्ट नहीं, आध्यात्मिक चुप्पी व चिंतन |
आत्महत्या से पहले गतिविधियाँ |
धार्मिक पुस्तकें पढ़ना, पार्क में अकेले बैठना |
पिता का बयान |
“शौर्य पहली बार रात में शांत था” |
आध्यात्मिकता में डूबा एक किशोर
परिजनों के अनुसार, शौर्य को मोबाइल, टीवी या दोस्तों के साथ समय बिताने में रुचि नहीं थी। वह गीता, रामायण और ऐतिहासिक किताबें पढ़ता था। कभी-कभी पार्क के कोने में अकेले बैठकर घंटों चिंतन करता था।
उसे कई बार अकेले में बैठे देखा गया लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि वह इस कदर अंदर से टूट चुका है।
आखिरी रात की खामोशी
मंगलवार रात वह अपने पिता के साथ सोया था। हमेशा आध्यात्मिक बातें करने वाला शौर्य उस रात बिल्कुल शांत रहा। बुधवार सुबह जब मां ने दरवाजा खटखटाया तो कोई उत्तर नहीं मिला। दरवाजा तोड़ा गया तो शौर्य फांसी पर लटका मिला।
मन में चल रही हलचल – परिवार को पता नहीं चला
राजेंद्र शर्मा (चाचा) के अनुसार, घटना के समय घर में केवल महिलाएं थीं। फौरन शौर्य को अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
विशेषज्ञों की सलाह – बच्चों की भावनाओं को समझें
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बच्चे “पलायनवाद” या दुनिया से अलगाव की बातें करने लगें तो परिवार को सतर्क हो जाना चाहिए।
बच्चों की चुप्पी, गहरी सोच, या निराशाजनक बातें उनके मानसिक संघर्ष के संकेत हो सकते हैं। समय पर संवाद और प्रोत्साहन उन्हें गंभीर कदम उठाने से रोक सकते हैं।